Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 645
________________ नीति वाक्यामृतम् अन्त्यमङ्गलम् मोक्षमार्ग के नेता जो, सत्यार्थ वस्तु दर्शाते हैं, घात-चारों घातिया जो सर्वज्ञाता के नाथ हैं. जिनके चरण प्रसाद से अनुवाद यह मैं कर सकी, उन ऋषभ जिनके चरण में शत-शत नमन कर हरपती / / / / "प्रस्तुत नीतिवाक्यामृतग्रन्थ की हिन्दी विजयोदय टीका की प्रशस्ति" अथ श्री मूलसंघे, सरस्वतीगच्छे, बलात्कारगणे, श्री कुन्दकुन्दाचार्य परम्परायां, दिगम्बराम्नाये परम् पूज्य श्री अंकलीकर चारित्रचक्रवर्ती, मुनिकुञ्जर सम्राट प्रथमाचार्या आदिसागरस्य पट्टशिष्य परम् पूज्य तीर्थभक्त शिरोमणि, समाधि सम्राट् 18 भाषाभाषी उद्भटविद्वान आचार्य श्री महावीर कीत: संघस्था कलिकालसर्वज्ञ-वात्सल्यरत्नाकर सन्मार्ग दिवाकरस्य शिष्या 105 प्रथम गणिनी आर्यिका ज्ञान चिन्तामणि विजयामती जी प्राप्ताज्ञया श्री 20वीं शताब्दे प्रथमाचार्य अंकलीकरस्य तृतीय पट्टाशिष्यतपस्वी सम्राट् भारत गौरव, वात्सल्यरत्नाकर सिद्धान्त चक्रवर्ती परम पूज्य आचार्य रल श्री 108 सन्मतिसागरस्य, इयं नीतिवाक्यामृतस्य हिन्दी विजयोदय टीका" विरचिता मया अद्य पौषकृष्णा द्वितीया मंगल वासरे, संध्याकाले पूर्वाह्ररात्री वीर नि.सं. 2521 परिसमाप्ता ता. 19-12-94 दिवसे श्री छोटे दीवान जी आदिनाथ जिनालये, जयपुरनाम्नानगरे / राजस्थान प्रान्ते / / शुभम् भूयात् ॐ नमः शान्ति " // जयतु श्री जिनवीर शासनम् / / " विनम्र सूचना :- इस टीका में मैंने अपनी अल्पबुद्धि के अनुसार शब्दार्थ, भावार्थ एवं मतार्थ का स्पष्टीकरण करने में यथाशक्ति प्रयास किया है, फिर भी कदाच कहीं अक्षर, पद, मात्रा, व्यञ्जन, स्वरादि की भूल हुई हो, अर्थ स्खलित हुआ हो तो परम् पूज्य गुरुजनों से प्रार्थना है कि वे अवश्य सुधार कर मुझे सूचित करें / विद्वानों से आशा है कि वे भी कमी या प्रमाद वश भूल हुई हो उसे सुधारकर पढ़ें और आगे के लिए मुझे सावधान होने का सुझाव भेजें / छदास्थ दशा में भूल होना स्वाभाविक है / 598.

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