Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 622
________________ नीति वाक्यामृतम् ---- - - - - पाणिग्रहण की शिथिलता का दुष्परिणाम, नव वधू की प्रचण्डता का कारण, उसके द्वारा तिरस्कार व द्वेष ।। का पात्र, प्राप्त होने योग्य प्रणय का साधन, विवाह योग्य गुण एवं उनके अभाव से हानि : शिथिले पाणिग्रहणे वरः कन्यया परिभूयते ।।15। मुखमपश्य तो वरस्यनिमीलित लोचना कन्या भवति प्रचण्डा ।।16 ॥ सह शयने तूष्णीं भवन् पशुवन्मन्येत ।।17। बलादाक्रान्ता जन्म विद्वेष्यो भवति ॥18॥ धैर्यचातुर्यायत्तं हि कन्या विस्राभणम् ॥१॥सम-विभवाभिजनयोरसमगोत्रयोश्च विवाह सम्बन्धः । 20 ॥ महतः पितुरैश्वर्यादल्पमवगणयति । अल्पस्य कन्या, पितुर्दाबल्यान् महतावज्ञायते ।।22 ।। अल्पस्य महतासह संव्यवहारे महान् व्योऽल्पश्चायः ।।23॥ वर वेश्यायाः परिग्रहो नाविशद्धकन्याया परिग्रहः ॥24॥वरं जन्मनाश: कन्यायाः नाकुलीनेष्ववक्षेपः ॥2॥ विशेषार्थ :- वर और कन्या का पाणिग्रहण शिथिल हो जाने से कन्या द्वारा वर का तिरस्कार होता है |115 ॥ वर अधिक लजीला हो, और अपनी नवोढा बधू का मुखावलोकन ही न करे, और वधू अपने पति की ओर सतृष्ण नेत्रों से देखती रहे, तब वह खीझकर प्रचण्डरूपा हो जाती है ।।16। नारद व जैमिनी ने भी कहा है : शिथिलं पाणिग्रहूँ स्यात् कन्यावर योर्यदा: परिभूयते तदा भर्ता कान्तया तत्प्रभावतः ॥ नारदः ।। मुखं न वीक्षते भर्ता वेदिमध्ये व्यवस्थितः । कन्याया वीक्ष्यमाणायाः प्रचण्डा सा भवेत्तदा ॥1॥ जो वर अपनी नव विवाहिता पत्नी के साथ एकान्त शयन तो करता है, परन्तु उसके साथ लज्जावश चुपचाप बैठा या सोया रहता है । उसके साथ अपना पतिधर्म रूप कार्य हास-विलास, चतुराई से संलाप आदि नहीं करता तो उसे वह नवोढा पत्नी पशु समान मूर्ख समझती है ।।17। यदि वर नव वधू के साथ बलात् काम क्रीड़ा की चेष्टा करता है तो उसकी बधू जीवनपर्यन्त उसके साथ द्वेषभाव करती रहती है ।।18 | कारण कि नववधू का पति के प्रति अनुराग व भक्ति वर के धैर्य व चातुर्य पर ही आश्रित होता है । अभिप्राय यह है कि वर अपनी नववध के साथ सौम्यता का व्यवहार कर स्नेह से व्यवहार करता है और दान-मान देता है तो उसका प्रणय उसे प्रास होता है । अन्यथा नहीं 19॥ जिनका समान ऐश्वर्य व परिवार-कदम्ब हो उनका ही विवाह सम्बन्ध माना गया है । अर्थात भिन्न गोत्रवाले वर-कन्याओं में ही विवाह सम्बन्ध माना जाता है ।।20 ॥ अगर इस प्रकार भिन्न गोत्रीय कन्या नहीं होवे तो समाज व्यवस्था नहीं बन सकती । तथा धनाढ्य की कन्या दरिद्र के यहाँ जाती है तो वह अपने पिता के ऐश्वर्य से उन्मत्त हो पति का अनादर करती है, यदि निर्धन की कन्या धनाढ्य वर के साथ विवाही जायेगी तो वह ऐश्वर्यवान पति व परिवार द्वारा तिरस्कृत होती है ।21-22 || यदि साधारण पैसे वाला धनवान के साथ विवाह M सम्बन्ध करता है तो उसके द्वारा उसमें खर्च व आमदनी कम होती है 123 | 575

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