Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 588
________________ नीति वाक्यामृतम् प्रकार दूसरे को आश्वासन देना । इन पाँचों उपायों से यथायोग्य समयानुसार प्रतिकूल को अनुकूल बनाना चाहिए 1171|| व्यास ने भी कहा है : साम्नायसिद्धिदं कृत्यंततो नो विकृतिं व्रजेत् । सजनानां यथा चित्तं दुरुक्तैरपि कीर्तितैः ||1|| साम्नवयत्र सिद्धिर्न दण्डो बुधेन विनियोज्यः ।। पित्तं यदि शर्करया शाम्यति तत्किं पटोलेन ।।2॥ अर्थ :- जिस प्रकार सज्जन पुरुष कर्कश-कठोर वचनों द्वारा अपने चित्त को विकृत नहीं होने देते हैं, उसी प्रकार सामनीति का आश्रय लेने से प्रयोजनार्थी का कार्य विकृत-विपरीत न होकर सिद्ध ही होता है । जिस प्रकार . पित्त की शान्ति यदि शक्कर सेवन से हो जाती है तो उसे पटोल (औषधि विशेष) खिलाने से क्या प्रयोजन ? व्यर्थ है उसी प्रकार सामनीति से सिद्ध होने वाले कार्य में दण्डनीति का प्रयोग व्यर्थ है ।। शत्रु राजा को बिना संग्राम किये वश करने के लिए अपनी सम्पत्ति का एक प्रकार से समर्पण करना । विजिगीषु राजा कहे कि मेरा वैभव आपका ही है आप अपनी इच्छानुसार उसको अपने आवश्यक कार्यों में लगा सकते हैं। इस प्रकार के उपाय को "आत्मोपसन्धान" नामक साम्यनीति कहते हैं ।72।। विजय का अभिलाषी राजा यह सोचकर कि संग्राम में समय और धन व्यय अधिक होगा, शत्रु को थोड़ा सन्न कर लेता है, अपने प्रचुर सम्पत्ति का रक्षण कर ले इसे उपप्रदान-दाननीति कहते हैं । शक्र भी कहते हैं : वह वर्थ स्वल्पवित्तेन यदा शत्रोः प्ररक्षते । पर प्रसादनं तत्र प्रोक्तं तच्च विचक्षणः ।।1।। अर्थ यही है। विजयाभिलाषी राजा अपने सेनापति, या तीक्ष्ण बुद्धि अन्य गुप्तचर तथा दोनों पक्षों से वेतन लेने वाले गुप्तचरों द्वारा शत्रु सेना में फूट डाल दे, एक दूसरे के प्रति सन्देह उत्पन्न कर, तिरस्कार पैदाकर परस्पर में विग्रह उत्पन्न कर फूट डालने को भेद नीति कहते हैं ।।74 ।। गुरु विद्वान ने भी कहा है : सैन्यं विषं तथा गुप्ताः पुरुषाः सेवकात्मकाः । तैश्च भेदः प्रकर्त्तव्यो मिथः सैन्यस्य भूपतेः ।।1।। उपर्युक्त हो अर्थ है । शत्रु को मृत्यु वरण कराना-बध करना, उसे पीड़ित करना, उसका धनहरण करना इसे दण्ड नीति कहते हैं 1175॥ जैमिनि ने भी इसी प्रकार व्याख्या की है : 541

Loading...

Page Navigation
1 ... 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645