Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 614
________________ नीति वाक्यामृतम् स एव पूज्यो लोकानां यद्वाक्यमपि शासनम् । विस्तीर्ण प्रसिद्धं च लिखितं शासनं यथा ॥ वाणी की महत्ता, मिथ्या वचनों का दुष्परिणाम, विश्वासघात-आलोचना, असत शपथ परिहार : नयोदिता वाग्वदति सत्या ह्येषा सरस्वती 181॥ व्यभिचारी वचनेषु नैहिकी पारलौकिकी वा क्रियास्ति ।।82॥ न विश्वासघातात् परं पातकमस्ति ।।83 ।। विश्वासघातकः सर्वेषामविश्वासं करोति 1184॥ असत्यसन्धिषु काशपानांजातान् हन्ति ।।85॥ विशेषार्थ :- सम्यक् नयावलम्बन से प्रसूत वाणी शिष्ट पुरुषों की होती है । वस्तुत: यह वाणी साक्षात् सरस्वती रूपा प्रिय और हितकर प्रतीत होती है 1181॥ कहा भी है: नीत्यात्मकात्रयां वाणीप्रोच्यते साधुभिर्जनैः ।। प्रत्यक्षा भारती ह्येषा विकल्पो नास्ति कश्चन ॥1॥ इति गौतमा ।। जो व्यक्ति अनैतिक और असत्य भाषण करते हैं उनके ऐहिक-इस लोक सम्बन्धी और पारलौकिक-परलोक सम्बन्धी क्रियाएँ सफल नहीं होती ।182 || कहा है : न तेषामिह लोकोऽस्ति न परोऽस्ति दुरात्मनाम् । यैरे व वचनं प्रोक्तमन्यथा जायते पुनः ।।1।। गौतम संसार में सबसे बड़ा पाप विश्वासघात है । अतएव शिष्ट-सदाचारी पुरुष कभी भी किसी के साथ विश्वासघात न करें 183 || कहा भी है 'अंगिर' ने : विश्वासघातकादन्यः परं पातक संयुतः । न विद्यते धरापृष्ठे तस्मात्तं दूरतस्त्यजेत् ॥1॥ विश्वासघाती संसार में सबका अविश्वास पात्र हो जाता है । कदाच वह सत्य कार्य भी करे तो भी लोग उसका विश्वास नहीं करते ।।84॥ रैभ्य ने कहा है : विश्वास घातको य: स्यात्तस्य माता पिताऽपि च । विश्वासं न करोत्येव जनेष्वन्येषु का कथा ॥ विश्वासघातक पुरुष का उसके माता-पिता भी उसका विश्वास नहीं करते अन्य लोगों की तो बात ही क्या। असत्प्रलापी यों ही यत्र-तत्र असत्य प्रतिज्ञा करते हैं, सौगन्ध खाते हैं । उनकी सन्तान हानि होती है । लोक ।। में निंद्य होते हैं 1 कहा भी है : 567

Loading...

Page Navigation
1 ... 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645