Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 606
________________ नीति वाक्यामृतम् बहूनामप्यसाराणां समवायो बलाधिकः । तृणैरावेष्टितो रज्जुर्यथा नागोऽपि बध्यते ॥7 ॥ जिस प्रकार अत्यन्त मृदु-कोमल मृणाल तन्तुओं को एकत्रित कर बड़े-बड़े दिग्गज भी बांधे जा सकते हैं, उसी प्रकार शक्तिहीन राजा भी बलिष्ठ सैन्य बल के द्वारा शक्तिशाली शत्रु को भी वश कर लेता है । समरांगण में परास्त कर विजलक्ष्मी प्राप्त कर लेता है ॥38॥ हारीत ने भी कहा है : अपि सूक्ष्मतरं भूत्यैर्बहुभिर्वश्यमानयेत् I अपि वीर्योत्कटं शत्रुं पद्म सूत्रैर्यथा गजम् ॥ ॥ अर्थ उपर्युक्त ही है । दण्डसाध्य शत्रु व दृष्टान्त, शक्ति व प्रतापहीन का दृष्टान्त, शत्रु की चापलूसी : दण्डसाध्ये रिपावुपायान्तर मग्नावाहुतिप्रदानमिव ॥39॥ यन्त्र शस्त्राग्निक्षार प्रतीकारे व्याधौं किं नामान्यौषधं कुर्यात् ॥40॥ उत्पादित दंष्ट्रो भुजंगो रज्जुरिव 141 प्रतिहतप्रतापोऽङ्गारः संपतितोऽपि किं कुर्यात् ॥42 ॥ विद्विषां चाटुकारं न बहुमन्येत ॥43 ॥ विशेषार्थ :जो शत्रु दण्डनीति द्वारा वश करने योग्य है उसे अन्य साम-दाम आदि नीतियों द्वारा वश करने का उपाय करना व्यर्थ है । अपितु अग्नि में घृताहुति के समान उसकी क्रोधाग्नि को अधिक प्रज्वलित करना है ।। माघ कवि ने भी कहा है : सामवादाः सकोपस्य तस्य प्रत्युत दीपकाः । प्रतमस्येव सहसा सर्पिषस्तोयविन्दवः 111 1 अर्थात् अग्नितत घृत में पानी के छींटे डालने पर वह अधिक कुपित हो जलाता है उसी प्रकार दण्डनीति से वश करने योग्य शत्रु को साम्य नीति का प्रयोग विपरीत फल देता है । 139 ॥ जिस प्रकार यन्त्र, शस्त्र, अग्नि व क्षारचिकित्सा द्वारा नष्ट होने योग्य व्याधि-रोग अन्य सामान्य औषधियों द्वारा नष्ट नहीं की जाती है, उसी प्रकार दण्ड द्वारा वश में करने योग्य शत्रु भी अन्य सामादि नीतियों द्वारा शमितकाबू में नहीं किया जा सकता । जिस प्रकार विषधर (सर्प) की दाढ़ें तोड़ दी जायं तो वह निर्विष हो सामान्य रस्सी के समान शक्तिहीन हो जाता है, ठीक उसी प्रकार जिस राजा की सेना व कोष (खजाना) नष्ट हो जाय तो वह भी शक्तिविहीन हो जाता है । अतः राजाओं को अपने सैन्यबल और धन बल का रक्षण करना चाहिए 1140-41 ॥ नारद ने भी कहा : दंष्ट्राविरहितः सर्पों भग्नशृंगोऽथवा वृषः । तथा वैरी परिज्ञेयो यस्य नार्थो न सेवकाः ॥11॥ जिस अंगारे का ताप नष्ट हो गया है- ज्वालनशक्ति जिसकी समाप्त हो गयी तो वह शरीर पर पड़ने पर 559

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