Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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मीति वाक्यामृतम्
मूर्ख मनुष्य अल्प खर्च के पीछे अपना सर्वनाश कर डालता है । प्राकरणिक अभिप्राय १ ह कि अज्ञानीराजनीति अनभिज राजा से प्रतिद्वन्दी राजा सामनीति से यदि भूमि आदि मांगता उसे कुछ भी नहीं देता, पश्चात् उसके साथ संग्राम होने पर सर्वनाश कर बैठता है, सारा का सारा राज्य हार जाता है । अत: नीतिज्ञ को चाहिए अल्प व्यय के भय से अधिक या सर्वनाश से अपना रक्षण करे 1127 ॥ वल्लभदेव ने कहा है :
हीनो नृपोऽल्पं गहरे पाय माचिसो नैव दयासि साना ।
कदर्यमानने ददति खारिं तेषां स चूर्णस्य पुनर्ददाति ।।1॥ कौन ऐसा व्यक्ति होगा जो कर (टैक्स) देने के भय से अपना व्यापार त्याग देगा ? कोई नहीं छोड़ सकता है ।।28 | कौशिक ने भी कहा है :
यस्य बुद्धिर्भवेत् काचित् स्वल्पापि हृदये स्थिता । न भाण्डं न्यजेत् सारं स्वल्पदान कृताद्भयात् ।।
___ अभिप्राय वही है। प्रशस्त व्यय त्याग, बलिष्ठ शत्रु को धन न देने का दुष्परिणाम, धन देने का तरीका :
स किं व्ययो यो महान्तमर्थ रक्षति ।।29॥ पूर्णसर :- सलिलस्य हि न परीवाहा दपरोऽस्ति रक्षणोपायः ॥७०॥ अप्रयच्छतो बलवान् प्राणैः सहाथै गृह्णाति 1B1॥ बलवति सीमाधिपेऽर्थ प्रयच्छन् विवाहोत्सवगृहगमनादिमिषेण प्रयच्छेत् 132
अन्वयार्थ :- (स:) वह (किम्) क्या (व्ययः) खर्च है (य:) जो (महान्तम्) महान (अर्थम्) पदार्थधन को (रक्षति) रक्षा करता है ? 129 ॥ (पूर्णसरः) भरे सरोवर के (सलिलस्य) जल का (हि) निश्चय से (परिवाहात्) वहाव से (अपरः) अन्य (न) नहीं (अस्ति) है (रक्षणस्य) रक्षण का (उपायः) उपाय IBO I (अप्रयच्छतः) नहीं देने वाले के (बलवान) बलिष्ठ (प्राणैः) प्राणों के (सह) साथ (अर्थम्) धन को (गृह्णाति) ग्रहण करता है ।31 ॥ (बलवति) बलवान (सीमाधिपे) सीमापति (अर्थम्) धन (प्रयच्छन्) देता हुआ (विवाहोत्सव) विवाह का उत्सव हो तो (गृहगमनादि) घर जाकर (मिषेण) बहाने से (प्रयच्छेत्) धन दे |B2|
विशेषार्थ :- जिस अल्प धन खर्च करने पर प्रचुर धन रक्षित होता है, वह क्या व्यय होगा? नहीं । अभिप्राय यह है कि शत्रु के बलवान होने पर उसे अल्प धनादि देकर सन्धि करना खर्च नहीं माना जाता । क्योंकि इससे उसके संचित प्रचुर धन की रक्षा होती है व इष्टप्रयोजन सिद्धि होती है ।।29 ॥ शौनक का कथन है कि :
उपचार परित्राणहत्वा विसं सबद्धयः ।
बलिनो रक्षयन्ति स्म यच्छेषंगृह संस्थितम् ॥ अर्थात् निर्बल राजा को बलिष्ठ पृथिवीपति को धनादि द्वारा सेवाकर अपने प्रचुर धन का रक्षण करना उचित ता
है।
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