Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम् -
राजाभावे तु संजाते योग्यः पुत्रो न चंद्रवेत् । तदा व्यंगोऽपि संस्थाप्यो यावत्पुत्र समुद्भवः ।1॥
जो राजकुमार शिष्ट व साधु पुरुषों के सन्निकट विद्याध्ययन करते हैं । नीतिशास्त्र, सदाचार व विनयाचार अवगत करते हैं । वे अपने वंश की वृद्धि करते हैं तथा राज्य को दूषित नहीं करते 173 ॥ वादरायण विद्वान ने भी यही भाव व्यक्त किये हैं :
विनयः साधुभिर्दत्तो राजन्यानां भवेद्धि यः ।
न दूषयति वंशं तु न राज्यं न च सम्पदम् ।।1। योग्यशिक्षित युवराज अपने कुल, वंश, राज्य व सम्पदा कोष की क्षति नहीं करता अपितु वृद्धि ही करता
जिस प्रकार घुण लगने पर-कीड़ों से खाई गई लकड़ी नष्ट हो जाती है उसी प्रकार दुराचारी, उद्दण्ड, दुशिक्षित राजकुमार का राज्य व वंश भी शीघ्र नष्ट हो जाता है । इसलिए दुराचारी व अनैतिक व्यक्ति को राज्याधिकारी नहीं बनाना चाहिए 174॥ भागुरि विद्वान ने भी कहा है :
राजपुत्रो दुराचारो यदि राज्ये नियोजितः ।
तद्राज्यं नाशमायाति घुणजग्धं च दारुवत् ।।1।। पिता से विद्रोह न करने वाले पुत्र (राजकुमार), माता-पिता, लाभ, माता-पिता के अनादर से हानि, उससे प्राप्त राज्य की निरर्थकता, पुत्रकर्तव्य :
आसविद्यावृद्धोपरुद्धाः सुखोपरुद्धाश्च राजपुत्राः पितरं नाभिद्रुह्यन्ति ।75॥ मातृपितरौ राजपुत्राणां परमं दैवम् 176 || यत्प्रसादादात्मलाभो राज्यलाभश्च ।77॥ मातृपितृभ्यां मनसाप्यपमानेष्वभिमुखा अपि श्रियो विमुखा भवन्ति ॥18॥ किं तेन राज्येन यत्र दुरपवादोपहतं जन्म 109 ।। क्वचिदपि कर्मणि पितुराज्ञां नो लंघयेत् 180॥
अन्वयार्थ :- (आसविद्या) वंश परम्परागत शिक्षा (वृद्ध-उपरुद्धाः) अपने निजी वजुर्गों से शिक्षित (सुखेन) सुख से (उपरुद्धाः च) और सुखपूर्वक पालित (राजपुत्राः) युवराज (पितरम्) पिता को (अभिद्रुह्यन्ति) विद्रोह के कारण (न) नहीं होते हैं 175 ।। (मातृपितरौ) योग्य माता-पिता प्राप्त होना (राजपुत्राणाम्) राजकुमारों का (परमम्) महान (दैवम्) भाग्य [अस्ति] है ।।76॥ (यत्) जिसके (प्रसादात्) प्रसाद से (आत्मलाभः) स्व लाभ (च) और (राज्यलाभः) राज्यलाभ [भवति] होता है 1177॥ (मातृ-पितृभ्याम्) माता-पिता को (मनसा) मन से (अपि) भी (श्रियः) लक्ष्मी (विमुखा) विपरीत (भवन्ति) होती हैं 178 ॥ (तेन) उस (राज्येन) राज से (किम्) क्या (यत्र) जहाँ (दुरपवादः) खोटा अपवाद (उपहतम्) पीडित (जन्म) जीवन [भवेत्] हो 179॥ (क्वचिद्) कभी (अपि) भी (कर्मणि) कार्य में (पितुराज्ञाम्) पिता की आज्ञा को (न) नहीं (लंघयेत्) उल्लंघन करे 180॥
विशेषार्थ :- जिन युवराजों को राजकीय वंश परम्परा से चले आये अनुभवी, वृद्ध, सदाचारी विद्वानों द्वारा नैतिकाचार और राजतंत्रविद्या सिखाई गई है । सुशिक्षा द्वारा और सुसंस्कारों से जो वृद्धि को प्राप्त हुए हैं । तथा
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