Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
इन्द्रियों को शक्तिहीन करने वाला कार्य :
व्याक्षेपभूमनोनिरोधोमन्दयति सर्वाण्यपीन्द्रियाणि ।।57 ।। अन्वयार्थ :- (व्याक्षेप:) तिरस्कार (भूः) भूमि (मनोनिरोध:) मन का रोकना (सर्वाणि) सम्पूर्ण (अपि) भी (इन्द्रियाणि) इन्द्रियों को (मन्दयति) शिथिल करती है 167 ॥
विशेषार्थ :- जिस भूप्रदेश में अपमानित होना पड़े अर्थात् जो स्थान विरोध रूप हो वहाँ ध्यान करने से समस्त इन्द्रियाँ शक्तिहीन हो जाती हैं । क्षेत्र का प्रभाव इन्द्रिय और मन पर भी पड़ता है । अत: योग्य क्षेत्र में ध्यान करना चाहिए ।57॥ स्वच्छ वायु का सेवन का फल :
स्वच्छन्दवृत्तिः पुरुषाणां परमं रसायनम् ।।58॥
अन्वयार्थ :- (स्वच्छन्दवृत्तिः) स्वच्छ वातावरण (पुरुषाणाम्) मनुष्यों को (परमम्) उत्तम (रसायनम्) रसायन [अस्ति] है ।।58 ॥
विशेषार्थ :- जिस प्रकार उत्तम रसायन का सेवन मनुष्यों को नीरोग, बलिष्ठ और योग्य बनाता है उसी प्रकार स्वच्छ, खुली एवं शीतल वायु में घूमना मन्द, सुगन्ध वायु का सेवन करना भी मन, इन्द्रिय एवं शरीर को स्वास्थ्य प्रदान करता है ।158 ॥ प्रातः काल का समय अधिक उपयोगी होता है ।। स्वच्छ वातावरण का दृष्टान्त :
यथाकामसमीहानाः किल काननेषु करिणो न भवन्त्यास्पद व्याधीमाम् ॥5॥
अन्वयार्थ :- (यथाकाम) इच्छानुसार (समीहाना:) विहारी (करिणः) गज (किल) निश्चय से (काननेषु) जंगल" (व्याधीनाम्) रोगों का (आस्पदम्) स्थान (न) नहीं (भवन्ति) होते हैं ।
विशेषार्थ :- सघन कानन (वन) में स्वतन्त्रता से इच्छानुसार विचरण करने वाले हाथियों को निश्चय से कभी भी रोग उत्पन्न नहीं होते ।।59 ।। सदैव सेवन योग्य वस्तु :
सततं सेव्यमाने द्वे एव वस्तुनी सुखाय, सरसः स्वैरालापः ताम्बूलभक्षणं चेति 160॥
अन्वयार्थ :- (द्वे) दो (एव) ही (वस्तुनी) वस्तुएँ (सततम्) निरन्तर (सेव्यमाने) प्रयुक्त करने से (सुखाय) सुख के लिए हैं - (संरसः) प्रेम से (स्वैः) स्वजनों से (आलापः) वार्तालाप (च) और (ताम्बूल-भक्षणम्) पान खाना (इति) यस 11601
विशेषार्थ :- संसार में अनेकों वस्तुएँ भोगोपभोग योग्य हैं । उनमें निरन्तर सेवनीय और सुख देने वाली ५