Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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-नीति वाक्यामृतम्
नीति वाक्यामृतम्
सदाचार सम्मुद्देशः
अत्यधिक लोभ, आलस्य व विश्वास से हानि, वलिष्ठ शत्रु कृत आक्रमण से बचाव, परदेश के दोष, पाप प्रवृत्ति के कारण हानि :
लोभप्रमादविश्वासैर्वहस्पतिरपि पुरुषो वध्यते वञ्चयते वा । ॥ वलवताधिष्ठितस्य गमनं तदनुप्रवेशो वा श्रेयानन्यथा नास्ति क्षेमोपायः ॥2॥ विदेश वासोपहतस्य पुरुषकारः विदेश को नाम येनाविज्ञात स्वरूप: पुमान् सतस्य महानपि लघुरेव ।।३।। अलब्ध प्रतिष्ठस्थ निजान्वयेनाहङ्कारः कस्य न लाघवं करोति ।आर्तः सर्वोऽपि भवति धर्मबुद्धिः ॥5॥ स नीरोगो यः स्वयं धर्माय समीहने । ॥ व्याधि ग्रस्तस्य ऋते धैर्यान्न परमौषधमस्ति 17 ॥ स महाभागो यस्य न दुरपवादोपहतं जन्म ।।8॥
अन्वयार्थ :- (लोभः) लालच (प्रमादः) अनुत्साह (विश्वासै:) विश्वास द्वारा (वृहस्पतिः) वृहस्पति (अपि) भी (पुरुषः) मनुष्य (वध्यते) बंधता है (वा) अथवा (वञ्चयते) ठगाया जाता है ।।1। (वलवताधिष्ठितस्य) बलवान से युक्त (गमनम्) जाना (वा) अथवा (तदनुप्रवेशः) उसके साथ प्रवेश (श्रेयान्) कल्याणकारी है (अन्यथा) नहीं तो (क्षेमोपायः) कल्याण का उपाय (न) नहीं (अस्ति) है ID || (विदेशवास:) परदेश में निवास (उपहतस्य) पीडित का (पुरुष्कार:) परिचय (विदेशकोनाम) क्या प्रयोजन (येन) जिससे (अविज्ञातस्वरुपः) नहीं जानने वाला (पुमान्) पुरुष (सः) वह (तस्य) उसका (महान्) विशिष्ट (अपि) भी (लघुः) छोटा (एव) [अस्ति] है । ॥ (अलब्धप्रतिष्ठस्य) प्रतिष्ठाहीन का (निजान्वयेन) अपने अन्वय से (अहंकारः) अभिमान (कस्य) किसके (लाघवम्) लघुता को (न) नहीं (करोति) करता है ? 14॥ व्याधिपीडित व्यक्ति का कार्य, धर्मात्मा का महत्व, बीमार की औषधि व भाग्यशाली पुरुष :
अन्वयार्थ :- (आर्तः) पीड़ित (सर्वाः) सभी (अपि) भी (धर्मबुद्धिः) धर्मात्मा (भवति) होता है ।।5।। (सः) वह (नीरोगः) स्वस्थ है (य:) जो (स्वयम्) स्वयं (धर्माय) धर्म के लिए (समीहते) चाहता है ।। (व्याधिग्रस्तस्य) रोगी की (धैर्यात्) साहस के (ऋते) बिना (परमम्) उत्कृष्ट (औषधम्) दवा (न) नहीं (अस्ति) है 17 ॥ (सः) वह (महाभागः) भाग्यशाली है (यस्य) जिसके (दुरपवाद-उपहतम्) अपवाद युक्त (जन्म) जीवन (न) नहीं [अस्ति] है। 8 ।।
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