Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
संसार में वेश्या एवं जुआरी लोगों को अविश्वासी माना जाता है । परन्तु न्यायालय में उनके द्वारा कही हुई वार्ता को अनुभव, साक्षी आदि द्वारा निर्णय किये जाने पर प्रमाणित माना जाता है ।12रैम्य ने भी कहा है -
या वेश्या बंधकं प्राप्य लघुमात्रं बहु बजेत् ।
सहिको धूतकारश्च हतौ द्वावपि ते तनौ । विवाद की निष्फलता, धरोहर-विवाद-निर्णय, गवाही की सार्थकता :
असत्यकारे व्यवहारे नास्ति विवादः ।।३॥ नीवीविनाशेषु विवादः पुरुष प्रामाण्यात् सत्यापयितव्यो दिव्य क्रियया वा ।।14। यादृशे तादृशे वा साक्षिणि नास्ति देवी क्रिया किं पुनरुभयसम्मते भनुष्ये नीचेऽपि 115॥
अन्वयार्थ :- (असत्यकारे) मिथ्या (व्यवहारे) व्यवहार में (विवादः) विवाद (नास्ति) नहीं होता ।13॥ (नीवी) धरोहर (बिनाशेषु) नष्ट होने पर (विवाद:) विवाद (पुरुषप्रमाण्यात्) पुरुष की प्रमाता से (सत्यापयितव्यः) सत्य निर्णय करना चाहिए (वा) अथवा (दिव्य) शपथ (क्रियया) क्रिया से निर्णय करे 114॥ (यादृशे) ऐसा (वा) अथवा (तादृशे) वैसा (साक्षिणि) गवाह होने पर (देवी) शपथादि (क्रिया) कर्म (नास्ति) नहीं चलता (पुनः) फिर (उभयसम्मते) मुद्दई मुद्दालय (पुरुषे) पुरुषों के (नीचे) तुच्छ होने पर (अपि) भी (किम्) क्या कहना ? |15॥
विशेषार्थ :- जिस स्थान पर मिथ्या-असत्य विवाद खड़ा हो जाता है वहाँ यथार्थ निर्णय करने के लिए सज्जनों को प्रयास नहीं करना चाहिए । क्योंकि जिस केश (मुकदमे) में मुद्दई व मुद्दालय अथवा वादी-प्रतिवादी दोनों ही असत्यभाषी हों अथवा वादी के स्टाम्प आदि असत् होते हैं वहाँ विवाद खड़ा ही नहीं हो सकता मुकदमा चल ही नहीं पाता, फिर निराधार निर्णय की आशा करना व्यर्थ है ।।13 ॥ ऋषिपुत्रक ने भी कहा है :
असत्यकार संयुक्तो व्यवहारो नराधिप । विवादो वादिना तत्र नैव युक्त. कथंचन 1॥
किसी अर्थी पुरुष ने अन्य किसी पुरुष के पास अपना सुवर्णादि कुछ धरोहर रूप में स्थापित किया (रक्खा) कारणवश वह नष्ट हो गया है और पुनः स्वामी के मांगने पर वह मनाई कर दे कि मुझे धन दिया ही नहीं । उस हालत में न्यायाधीश का कर्तव्य है कि उस धरोहर का निर्णय रखने वाले पुरुष की सचाई से करे और यदि धरोहर रखने वाला प्रामाणित पुरुष न हो तो उससे शपथ कराकर अथवा दण्डभय दर्शाकर यथार्थता का पता लगावे और उसका धन धनी को दिलवा दे। साथ ही यदि धरोहर रखने वाला कहता है कि धन चोरी हो गया तो उसका पता लगाकर निर्णय करे कि सत्य क्या है ? और पुनः निर्णय करे ।।14। नारद ने भी कहा है :
निक्षेपो यदि नष्टः स्यात् प्रमाणः पुरुषार्पितः । तत्प्रमाणं सकार्यो यदिव्ये तं वा नियोजयेत् ॥1॥
उपर्युक्त हो अर्थ है।
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