Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
धनिनो यतयोऽपि चाटुकारः 1147 ॥
अन्वयार्थ :- ( लोभवति) लोभी में (सर्वे) सभी (गुणाः) गुण (विफला: ) निष्फल ( भवन्ति) होते हैं । 143 ॥ ( प्रार्थना) याचना (कं नाम) किसको (न), हीं (लघयति) लघु करती ? 1144 ॥ ( पुरुषस्य ) पुरुष का (दारिद्रयात्) दरिद्रता से (परम्) अधिक (लाञ्छनम् ) दूषण (न) नहीं (अस्ति) है (यत्) जो (संगेन) साथ से (सर्वे) सभी (गुणाः) गुण (निष्फलताम् ) व्यर्थ (यान्ति) जाते हैं 1145 | (अलब्ध:) धन न पाने पर (अपि) भी (लोकः) संसारी (धनिनः) धनिकों का (भाण्डः) कीर्तन (भवति) करने वाला होता है 1146 ॥ ( यतयः) साधु (अपि) भी (धनिनः) धनिकों के (चाटुकार :) प्रशंसक होते हैं 1147
विशेषार्थ :- "लालच बुरी बलाय' लोभी के समस्त गुण व्यर्थ हो जाते हैं क्योंकि उनकी महिमा प्रकट नहीं करता, अपितु तृष्णावश उन्हें अप्रकट रखता है 1143 ॥
याचक के महत्व को वह स्वयं पी जाता है । अर्थात् याचना करने वाले को कौन लघु नहीं मानता ? सभी की दृष्टि में लघु हो जाता है । 144 ॥ संसार में जीवन को दूषित करने वाली वस्तु दरिद्रता से बढ़कर अन्य कुछ भी नहीं है। यह इतना विशाल दोष है कि इसके उदर में मनुष्य समस्त गुण समा जाते हैं । " दो" यह शब्द मुंह से निकलते ही मानव की श्री, ही, धृति, कीर्ति व यश निकल कर विलीन हो जाते हैं 1145 ॥ किसी विद्वान ने
भी कहा है कि :
उपकार परोयातिः निर्धनकस्यचिद्गृहे I पारविष्यति मात्रेण धनाढ्यो मन्यते गृही ॥1 ॥
दरिद्र सज्जनतापूर्वक किसी का उपकार भी करता है तो लोग उसे सन्देह रूप दृष्टि से ही देखते हैं कि कहीं प्रत्युपकार में कुछ मांग न ले ।145 ॥
याचक को धनिक से धन नहीं मिले तो भी वह उसका यशोगान ही करता है, क्योंकि दूसरे दिन मिल जाने की आशा जगी रहती है। धन मिलने पर तो कहना ही क्या है । तब तो वह प्रशंसा के गीत गायेगा ही 1146 | वल्लभदेव ने कहा है :
न त्वया सदृशो दाता कुलीनो न च रूपवान् । कुलीनोऽपि विरूपिपोऽपि गीयते च धनार्थिभिः ॥1॥
अर्थ :- धन चाहने वाला याचक दुष्कुलीन, कुरुप, अदाता को भी श्रेष्ठकुली सुन्दर रुपवान, बड़ादाता कहकर यश गाते हैं ।। ॥
साधुजन भी यदि धनिकों का यशोगान करें तो फिर साधारणजनों का क्या दोष है । वे तो उसकी प्रशंसा करते ही हैं 1147 ॥ वल्लभदेव ने कहा है :
यस्यास्ति वित्तं स नरः कुलीनः स पण्डितः सश्रुतवान्गुणज्ञः स एव वक्ता स चदर्शनीयः सर्वेगुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति ॥11 ॥
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