Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
M
-नीति वाक्यामृतम् गुण-युक्त हाथी व घोडों का सैन्य भी "सारबल" है । अतएव जयलक्ष्मी के इच्छुक राजा सारभूतसैन्य द्वारा सुखपूर्वक शत्रु का दमन करता है ।। नारद ने भी "सारबल" का यही लक्षण कहा है :
रथैखमर्दितं पूर्व पर सैन्यं जयेत्रपः ।
हभिती: समादिप्दै मौलाद्यैः स सुखेन च । उपर्युक्त षट् सेनाओं के अतिरिक्त एक सातवीं उत्साही सेना भी होती है । जिस समय विजयाभिलाषी शत्रु की सेना पर चतुरंग सेना से प्रबल आक्रमण करता है, तब वह शत्रु-राष्ट्र को नष्ट-भ्रष्ट करने व धन लूटने के
की सेना में घुस जाते हैं । मिल जाते हैं । इनमें छात्र क्षेत्र समाज, विवेक, शस्त्र विद्या प्रवीण व इसमें अनुराग युक्त क्षत्रिय वीर पुरुष सैनिक होते हैं ।।13 | नारद विद्वान ने भी कहा है :
औत्साहिक सैन्य के प्रति राज-कर्त्तव्य, प्रधान सेना का माहात्म्य स्वामी द्वारा सेवकों को दिये सम्मान का प्रभाव :
मौलबलाविरोधेनायबलमर्थमानाभ्यामनुगृहीयात् ॥4॥ मौलाख्यमा पद्यनुगच्छति दण्डितमपि न द्रुह्यत्ति भवति चापरेषामभेद्यम् ।15 ॥ न तथार्थः पुरुषान् योधयति यथा स्वामिसम्मानः ।।16॥
___ अन्वयार्थ :- (मौलिबल:) मुख्य सेना (अविरोधेन) के विरोध बिना (अन्यत्) दूसरी (बलम्) सेना को भी (अर्थम्) धन (मानाभ्याम्) मान द्वारा (गृह्णीयात्) स्वीकार करे In4॥ (मौलाख्या) मौल नामक सेना (आपदि) विपत्ति में (अनुगच्छति) साथ रहती है (दण्डितम्) दण्ड दिये जाने पर (अपि) भी (न द्रुह्यति) द्रोह नहीं करती है (च) और (परेषाम्) शत्रु से (अभेद्यम्) अभिद्य (भवति) होती है 15 ॥ (यथा) जिस प्रकार (स्वामिसम्मान:) राजा से प्राप्त सम्मान (पुरुषान्) वीरों को (योधयति) युद्ध कराता है (तथा) उस प्रकार (अर्थम्) धन-सम्पत्ति (न) नहीं कराती है 11161
विशेषार्थ :- भूपति अपनी प्रधान सेना का अपमान कभी न करें । अपितु उसे दान सम्मान द्वारा प्रसन्नअनुकूल बनाने का प्रयत्न करे । उसके साथ ही उत्साही सैन्य अर्थात् शत्रु सेना को भी राज सम्मान देकर प्रसन्न रखने की चेष्टा करे, ताकि वह अधिक विद्रोही न हो जावे ।।14॥ वादरायण का भी यही मत है :
अन्यद् बलं समायातमौत्सुक्यात् परनाशनम् ।
दानमानेन तत्तोष्यं मौल सैन्याविरोधतः ॥ मौल सैन्य विपत्ति आने पर भी राजा का साथ देता है । दण्डित होने पर भी स्वामीभक्ति से विमुख नहीं होता । तथा शत्रुओं द्वारा भेदनीति से वश नहीं होता । अतएव विजय वैजयन्ती लाभेच्छु भूपेन्द्रों को उसको मानसम्मान व दान द्वारा प्रसन्न रखना चाहिए ।15 || वशिष्ठ विद्वान ने भी यही कहा है :
न दण्डितमपि स्वल्पं द्रोहं कुर्यात् कथंचन । मौलं बलं न भेद्यं च शत्रुवर्गेण जायते ॥
418