Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
स्वातन्त्र्यं नास्ति नारीणां मुक्त्वा कर्मचतुष्टयम् । बालानां पोषणं कृत्यं शयनं चाङ्ग भूषणम् ॥1॥
कामी पुरुष भोगलिप्सा के वशीभूत हो स्त्री को स्वच्छन्द कर देते हैं। सभी कार्यों में मनमाना करने से वे उद्दण्ड होकर अनर्थों में जुट जाती हैं। पुनः वे निरंकुश हो अपने पति के हृदय को भी उसी प्रकार विदीर्ण करती हैं, जिस प्रकार तलवार वैध कर पार हो जाती है । निरंकुश गज की भाँति वे क्या-क्या अनर्थ नहीं करती? सब कुछ कर डालती हैं। पति के चित्त को ही छिन्न-भिन्न कर डालती हैं । 140
नदी तट से उखड़ा वृक्ष जल प्रवाह में पड़ जाये तो क्या चिरकाल तक स्थिर रह सकता है ? क्या अपनी वृद्धि कर सकता है ? नहीं कर सकता । अपितु नष्ट हो जाता है । इसी प्रकार स्त्री के प्रेम नाशे में पराधीन पुरुष उसके आधीन रहने से अधिक क्षति के साथ नष्ट हो जाता है । अतएव स्त्रियों के आश्रित नहीं रहना चाहिए 1141 ॥ शुक्र विद्वान ने भी कहा है :
न चिरं वृद्धिमाप्नोतियः स्त्रीणां वशगो भवेत् । नदी प्रवाह पतितो यथा भूमि समुद्भवः ॥॥1॥
जिस प्रकार अपनी मुट्ठी में स्थित तलवार की मूठ समराङ्गण में विजय प्राप्त कराती है, उसी प्रकार पति की आज्ञानुसार चलने वाली पतिव्रता नारी भी उसके सम्पूर्ण मनोरथों की सिद्धि करती हैं । सारांश यह है कि नारी जीवन स्वच्छन्द नहीं होग जाहिए । उसे पतिपरमेश्वर मानकर उसके अनुकूल ही आचरण करना चाहिए 1142 ॥ किसी नीतिकार ने भी कहा है :
या नारी वशगा पत्युः पतिव्रता परायणा J सास्वपत्युः करोत्येव मनोराज्यं हृदि स्थितम् ॥17॥
अर्थात् पतिवश्या पतिव्रता - आज्ञाकारिणी नारी पति के इच्छित कार्यों की पूर्ति में सहयोगी होती है
।1 ॥
स्त्रियाँ स्वभाव से काम-क्रीडा में चतुर होती हैं । अतः नीतिज्ञ पुरुषों को नारियों को कामशास्त्र की शिक्षा में विशेष प्रवीण नहीं करना चाहिए। क्योंकि स्वभाव से उत्तम काम शास्त्र का ज्ञान स्त्रियों को छुरी में पडे पानी की बिन्दु समान नष्ट कर देता है । अर्थात् जिस प्रकार पानी की बिन्दु छुरी पर पड़ते ही नष्ट हो जाती है, उसी प्रकार कामशास्त्र की शिक्षा भी स्त्रियों को कुल-धर्म चारित्रधर्म से गिराकर नष्ट-भ्रष्ट कर देती है । अतः स्त्रियों को कामशास्त्र के अतिरिक्त अन्य लौकिक एवं धार्मिक शिक्षण देना चाहिए । मूलतः तो धार्मिक शिक्षा ही प्रमुख है | 143 1 भारद्वाज विद्वान ने भी कहा है :
न कामशास्त्र तत्वज्ञाः स्त्रियः कार्या कुलोद्भवाः । यतो वैरूपमायान्ति यथा शास्त्र्यं दुःसंगमः । ।1 ॥
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