Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
समान प्रियंकरा होती हैं, अर्थात् पुरुषों के चित्त में आनन्द उत्पन्न करती हैं । अमत न किसी ने देखा है न पान ही किया है, संभवत: देवों के कण्ठ से झरने का वृत्तान्त ज्ञात कर उसकी उपमा दी जाती है । जो हो विषयभोगी जन नारियों को भी उस अमृत के साथ तुलना कर आनन्द दायक स्वीकार करते हैं 137 ॥ शुक्र विद्वान ने भी लिखा है :
लक्ष्मी संभव सौख्यस्य कथिता वामलोचनाः । यथा पीयूष वाप्यश्च मन आह्वाददा सदा ।11॥
. उपर्युक्त के समान ही है। मनुष्यों को नारियों के कर्तव्य या अकर्तव्य देखने से क्या प्रयोजन ? कुछ भी प्रयोजन नहीं है । सारांश यह है कि महिलाएँ स्वभाव से कोमलांगी. सरस हृदया. सरल चित्ता हआ करती हैं । जिनागम में कन्याओं का स्वभाव केवल ज्ञान मशश कहा है वे जैसा समागम-सम्पर्क पाती हैं उसी प्रकार के गुणधर्म ग्रहण कर लेती हैं । अतएव नीतिवान पुरषा का कर्तव्य है कि वे उन्हें सुशिक्षा के माध्यम से सुयोग्य, सदाचारिणी, धर्मज्ञा बनायें ।। सन्मार्ग रूढ करें 1138 ।। स्त्रियों की सीमित स्वाधीनता, आसक्त पुरुष, उनकी आधीनता से हानि, पतिव्रता का माहात्म्य व उनके प्रति पुरुष का कर्तव्य वर्णन :
अपत्यपोषणेगृहकर्मणि शरीर संस्कारे शयनावसरे स्त्रीणां स्वतन्त्र्यं नान्यत्र ।।39॥ अति प्रसक्तः स्त्रीषु स्वातन्त्र्यं कर पत्रमिव पत्यु विदार्यहृदयं विश्राम्यति 1140 ॥ स्त्रीवश पुरुषों नदी प्रवाह पतितपादप इव न चिर नन्दति ।।41 ॥ पुरुष मुष्टिस्थास्त्री खगयष्टिरिव कमुत्सवं न जनयति ।।2।। नातीव स्त्रियो व्युत्पादनीयाः स्वभावसुभगोऽपिशास्त्रोपदेशः स्त्रीषुशस्त्रीषु पयोलव इव विषमतां प्रतिपद्यते 143 ॥
अन्यवार्थ :- (अपत्य) संतान (पोषणे) पालन करने में (गृहकर्मणि) गृह कार्यो में (शरीरसंस्कारे) शरीर शृंगार में (शयतावसरे) पति के साथ शयन में (स्त्रीणाम्) स्त्रियों को (स्वातन्त्र्यम्) स्वतन्त्रता है ( अन्यत्र) अन्य कार्यों में (न) नहीं 109 ॥ (अतिप्रसक्तः) अति आसक्त पुरुष (स्त्रीषु) स्त्रियों में (स्वातन्त्र्यम्) उन्हें स्वच्छन्दता देता है तो वे (करपत्रम्) तलवार के (इव) समान (पत्युः) पति के (हृदयम्) हृदय को (विदार्य) विदीर्ण करे बिना (न) नहीं (विश्राम्यति) विश्राम को प्राप्त नहीं होती 140।। (स्त्री-वश पुरुषः) स्त्री के वशीभूत (नदीप्रवाहपतित) नदी के बहाव में पडे (पादप:) वृक्ष (इव) समान (चिरम्) अधिककाल (न) नहीं (नन्दति) प्रसन्न रहता है |॥1॥ (पुरुषमुष्टिस्था) पुरुष के अंकुश में (स्त्री) पत्नी (खायष्टि:) तलवार (इव) समान (कम्) किसको (उत्सवम्) आनन्द (न) नहीं (जनयति) उत्पन्न करती है ? | 42 ||
विशेषार्थ :- कहावत है "जिको काम जाई को छाजे, बीजो करे तो डंको बाजै" जो कार्य जिसके योग्य उसे ही वह कार्य करना चाहिए और उसमें उसे पूर्ण स्वतंत्र होना चाहिए । स्त्रियों के योग्य प्रमुख चार कार्य हैं - 1. सन्तान का पालन पोषण करना, 2. गृहकार्यों का सम्पादन करना, 3. शरीर संस्कार-शृंगारादि व वस्त्राभूषण धारण करना वगैरह आर 4. पति के साथ शयन करना । इन चार कार्यों के अतिरिक्त अन्य कार्यों में उन्हें स्वातन्त्र्य नहीं देना चाहिए ।19 ॥ भागुरि विद्वान ने भी कहा है :
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