Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
है । ॥ (हि) निश्चय से (अश्वबलप्रधानस्य) घोटकबल प्रधान वाला (राज्ञः) राजा (कदनकन्दुक:) युद्ध रूप से गेंद (क्रीडाः) खेल (प्रसीदन्ति) प्रसन्न होती है, - विजयश्री प्रसन्न (श्रियः) लक्ष्मी [प्रसीदन्ति] प्रसन्न होती है (दूरस्था) दूर के (अपि) भी (शत्रवः) शत्रु (करस्था:) हाथ में आ जाते हैं (आपत्सु) आपातकाल में (सर्वमनोरथसिद्धिः) सभी इच्छित सिद्ध (तुरंगाः) अश्व (एव) ही, (सरणम्) आना (अपसरणम्) भाग जाना (अवस्कन्दः) सेना से (पर अनीक भेदनम्) शत्रु सेना का भेद न करना (च) और (एतत्) इसी प्रकार (असाध्य) कठिन कार्य
डे का कार्य अस्ति] है 18 (विजिगीष) जीतने का इच्छुक (जात्यारूढः) उसका विजयी होता है (आरातिः) शत्रु (गमनम) आक्रमण (न) नहीं (ददाति) करता है 19॥ (तर्जिकादि) जाति अश्व के उत्पत्ति स्थान १ हैं 11101
विशेषार्थ :- अश्व सेना चतुरङ्ग सेना का चलता-फिरता भेद है । क्योंकि ये अत्यन्त चपल, तीव्र-वेग व वीर होते हैं 17 ॥ नारद विद्वान ने कहा है :
तुरंगमवलं यच्चतत्प्रकारो बलं स्मृतम् । सैन्यस्य भूभुजा काय तस्मात्तद्वेगवत्तरम् 11 ॥
अर्थ उपर्युक्त ही है ।
जो राजा अश्व सेना से बलिष्ठ है उस पर विजयश्री प्रसन्न होती है। क्योंकि गेन्द के खिलाड़ी की भांति युद्ध में क्रीड़ा करने वाली विजयलक्ष्मी अश्वारोहियों को ही विजय हार पहनाती है । जिससे स्वामी को प्रचुर सम्पत्ति प्राप्त होती है । दूरवर्ती शत्रु भी निकटवर्ती हो जाते हैं । इस सेना द्वारा विजयेच्छु आपत्तिकाल में इष्ट वस्तु प्राप्त करता है । शत्रुओं के समक्ष जाना, उस पर हमला करना और अवसर आने पर छलांग मार कर भाग जाना सरलता से हो जाता है । छल से उन पर धावा करना अथवा शत्रुसेना को छिन्न-भिन्न कर डालना, ये कार्य अश्व सेना ही द्वारा संभवित होते हैं । रथादि से नहीं 18 ॥ शुक्र विद्वान ने भी कहा है :
प्रेक्षतामपि शत्रूणां यतो यान्ति तुरंगमैः ।
भूपाला येन निघ्नन्ति शत्रु दूरेऽपि संस्थितम् ।। अर्थ :- राजागण अश्वसेना के माध्यम से दर्शकों के समक्ष ही शत्रुओं पर आक्रमण कर दूरवर्ती सेना को भी परास्त कर देते हैं, शत्रु को मार डालते हैं ।।।।
जो नृप जात्यश्व पर आरूढ़ होकर शत्रु पर चढ़ाई करता है वह अवश्य विजयी होता है । शत्रु विजिगीषु पर शत्रु प्रहार नहीं कर सकता ॥9॥ जाति अश्व के 9 उत्पत्ति स्थान व जातियाँ हैं :
1. तार्जिका, 2. स्वस्थलाणा, 3. करोखरा, 4. गाजिगाणा, 5. कंकाणा, 6. पुष्टाहार, 7. गाव्हारा, 8. सादुयारा व 9. सिन्धुपारा 110 ॥ शालिहोत्र विद्वान ने भी कहा है :
तर्जिका, स्वस्थलाणासुतोखरास्थोत्तमाहयाः । गाजियाणासकेकाणा:पुष्ठाहाराश्च मध्यमाः II7॥
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