Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
अन्वयार्थ :- (य:) जो पुरुष (एकस्मिन्) एक (कर्मणि) कार्य में (दृष्टबुद्धिः) बुद्धिमान देखा जाता है (सः) वह (पुरुषाकार:) पुरुष (कर्मान्तरेषु) अन्यकार्यों में (कथम्) किस प्रकार (समर्थः) सामर्थ्यवान (न) नहीं होता |13||
विशेषार्थ :- जो सुज्ञ पुरुष किसी एक कार्य में चतुर होता है वह दूसरे कार्यों में भी सफलता पाने का अधिकारी क्यों नहीं हो सकता है ? होना संभव है । अर्थात् संभव है कि कोई विद्वान किसी कार्य में पूर्ण निष्ठात तो नहीं है परन्तु तो भी अपने बद्धि-कौशल से उन कार्यों को अवश्य कर दे ।। अर्थात उस है ।। सही प्रयोग करे तो कर सकता है । जैमिनि विद्वान् ने भी लिखा है ॥:
पूर्व यस्य मतिद् ष्टा पुरुषार्थोऽपरस्तथा ।
पश्चात्तेनानुमानेन तस्य ज्ञेया समर्थता ॥1॥ अर्थ :- जिसमें बुद्धि और पुरुषार्थ की सिद्धि एक कार्य में सफलता देखी जाती है उसे उसी अनुमान प्रमाण से अन्य कार्य की सिद्धि में भी सक्षम समझ लेना चाहिए ।। बुद्धि का विकास संगति व पुरुषार्थ पर आधारित होता है ।130 आगम व आप्त का लक्षण :आप्त पुरुषोपदेश
आगमः।114॥ यथानुभूतानुमित श्रुतार्थाविसंवादि वचनः पुमानाप्तः ॥5॥ अन्वयार्थ :- (आसः) यथार्थ देव-सर्वज्ञ (पुरुषस्य) पुरुष का (उपदेशः) धर्मोपदेश (आगमः) आगम [अस्ति] है ।14॥ [यस्य] जिसके (वचन:) वचन (यथा) जिस प्रकार (अनुभूतः) अनुभव में आये (अनुमितः) अनुमान प्रमाण से निश्चित (श्रुतः) श्रुत के (अविसंवादि) विसंवाद रहित हों [स:] वह (पुमान्) पुरुष (आप्तः) आप्त है 1114 115॥
विशेषार्थ :- आप्त-वीतराग, सर्वज्ञ, हितोपदेशी तीर्थकर या आगमानुकूल सत्य वक्ता आचार्यों शिष्ट पुरुषों का उपदेश "आगम" कहलाता है ।14॥
जो अनुभव अनुमान एवं आगम प्रमाण द्वारा निश्चित किये हुए पदार्थों को तद्नुकूल-विरोध शून्य वचनों द्वारा निरुपण करता है उस यथार्थ वक्ता तीर्थकर महापुरुष को वा उक्तगुण सहित प्रामाणिक शिष्ट पुरुष को "आत" कहते हैं In5 | हारीत विद्वान ने भी कहा है :
यः पुमान् सत्यवादी स्यात्तथास्लोकस्य सम्मतः ।
श्रुतार्थो यस्य नो वाक्यमन्यथाप्तः स उच्यते ॥ अर्थ :- जो पुरुष सत्यवक्ता, लोकमान्य कुलोत्पन्न, आगमानुकूल पदार्थों का निरुपण करने वाले और न अन्यथावादी नहीं हों वे"आत" कहलाते हैं ।11511
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