Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
नीति वाक्यामृतम्
जिसके पास धनराशि परिपूर्ण होती है, वही विजय पताका फहराने में समर्थ होता है । अतः राजाओं को अपना खजाना बलशाली बनाना चाहिए 18 ॥ निर्धन की कटु आलोचना, कुलीन सेना अयोग्य राजा, धन-माहात्म्य, मनुष्य की कुलीनता और बड़प्पन व्यर्थ होने के कारण :
धनहीन: कलत्रेणापि परित्यज्यते किं पुनर्नान्यः ।।१॥न खलु कुलाचाराभ्यां पुरुषः सर्वोऽपि सेव्यतामेति किन्तु वित्तेनैव ।।10।। स खलु महान् कुलीनश्च यस्यारिन धनग्ननम् 11: किं. नया कुहीन लया महत्तया वा या न सन्तर्पयति परान् ।।12॥
अन्वयार्थ :- (धनहीनः) निर्धनपुरुष (कलत्रेण) स्त्री द्वारा (अपि) भी (परित्यज्यते) छोड दिया जाता है (पुनः) फिर (अन्यैः) अन्य की (किम्) क्या बात? 1119॥ (खलु) निश्चय से (कुलाचाराभ्याम्) कुल व आचार द्वारा (पुरुषः) मनुष्य (सर्वोऽपि) सबके द्वारा भी (सेव्यताम्) पूज्यता को (न) नहीं (एति) प्राप्त होता है (किन्तु) अपितु (वित्तेन) धन से (एव) ही im॥ (यस्य) जिसके (अनूनम्) अपरिमित (धनम्) धन (अस्ति) के (सः) वह (खलु) निश्चय (महान्) बड़ा (च) और (कुलीन:) उत्तम कुली (अस्ति) है |11 || (तया) उस (कुलीनतया) कुलीनता (च) और (महत्तया) महानता से (किं) क्या प्रयोजन (या) जो (परान्) दूसरों को (न) नहीं (सन्तर्पयति) सन्तुष्ट करे ? 1112॥
विशेषार्थ :- संसार बड़ा विचित्र है । धनवान के सब साथी हैं निर्धन होने पर अपनी सहधर्मिणी पलि भी पति का त्याग कर देती है ।। तब अन्य सेवकों की तो बात ही क्या है? वे तो छोड़ ही देंगे । सारांश यह है कि विपत्ति काल में निर्धन की कोई सहायता नहीं करता । अत: विवेकी पुरुषों को न्यायोचित उपायों से धनार्जन करने का प्रयत्न करना चाहिए 19॥
सेवक सेवा का फल धन चाहते हैं । अतः उत्तम कुली और सदाचारी होने मात्र से वे राजा की सेवाभक्ति नहीं करते अपितु धनार्थ सेवा सुश्रुशा, आज्ञापालन आदि करते हैं । संसार में देखा जाता है दरिद्री व्यक्ति कितना ही सुशील, सदाचारी, उच्चकुलीन होने पर भी उसकी सेवार्थ कोई नहीं आता, क्योंकि उससे जीविकोपार्जन का साधन धन प्राप्ति की संभावना नहीं है । किन्तु चारित्र भ्रष्ट, नीचकुलोत्पन्न धनाढ्य व्यक्ति की सभी सेवा को तत्पर रहते
कि उससे जीविका का साधन उपलब्ध होता है । सबका निष्कर्ष यही है कि राजा को कुलीन, सदाचारी, न्यायी होने पर भी कोष वृद्धि का लक्ष्य रखना चाहिए । ताकि राजतन्त्र व्यवस्थित, पुष्ट और राजभक्ति बना रहे 1110॥ व्यास विद्वान ने भी कहा है :
अर्थस्यपुरुषो दासो नार्थो दासोऽत्र कस्यचित् ।
अर्थार्थ येन सेव्यन्ते नीचा अपि कुलोद्भवैः ।1।। अर्थ :- संसार में मानव व धन का भृत्य है, धन किसी का नौकर नहीं । क्योंकि धनार्थ कुलीन व्यक्ति भी नीचधनेश्वर की सेवा करते हैं |
410