Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
आपत्काले तु सम्प्राप्ते बहु व्ययसहक्षमः ।
हिरण्यादिभिः संयुक्तः स कोशो गुणवान् स्मृतः ॥ अर्थात् वह कोष गुणवान है जहाँ से यथावसर यथायोग्य धनराशि व्यय की जा सके ।।1 ॥ राज कोष भरपूर सम्पत्तिशाली होना चाहिए ।।2।। नीतिकार कामन्दक ने भी कहा है :
मुक्ताकनकरत्नाढ्यः पितृपैतामहोचितः । धर्मार्जितो व्ययसहः कोषः कोषज्ञ सम्मतः ।।॥ धर्म हेतोस्तथार्थाय भृत्यानां भरणाय च । आपदर्थ च संरक्ष्यः कोषः कोषवता सदा ॥2॥
अर्थ :- जो मुक्ता, मणि, सुवर्ण और रत्नों से भरपूर, पिता व पितामह (दादा) आदि पैतृक परम्परा से न्यायोचित संग्रहीत चला आया, ठोस, पुष्कल खर्च सहन करने में सक्षम हो उसे अर्थ शास्त्र वेत्ताओं ने कोष या खजाना कहा है । कोषाध्यक्ष धनाढ्य पुरुषों को धर्म और धन की रक्षा के निमित्त एवं भृत्यों के भरण-पोषण के लिए, आपत्ति से संस्काई सतत कोश की रक्षा करना चाहिए 11211
भूपति अपने खजाने की न्यायोचित टैक्स द्वारा वृद्धि करता हुआ आय रूप सम्पत्ति में से अनुपातानुसार कम से कम धन अपने खर्च में व्यय करे । ॥ वशिष्ठ विद्वान ने कहा है :
कोशवृद्धि सदा कार्या नैव हानिः कथंचन ।
आपत्कालादृते प्राज्ञैर्यत्कोशो राज्यरक्षकः ।। अर्थ :- बुद्धिमान नरेशों को आपत्तिकाल को छोड़कर राज्यरक्षक कोष की सतत् वृद्धि करना चाहिए, न कि हानि ॥ कोश हानि से राजा का भविष्य, कोश माहात्म्य, कोषविहीन राजा के दुष्कृत्य व विजयलक्ष्मी का स्वामी
कुतस्तस्यायत्यां श्रेयांसि यः प्रत्यहं काकिण्यापि कोशं न वर्धयति । ॥ कोशोहि भूपतीनां जीवनं न प्राणा: 15 ॥ क्षीण कोशो हि राजा पौरजनपदानन्यायेन ग्रसते ततो राष्ट्रशून्यता स्यात् ।। ।। कोशो राजेत्युच्यते न भूपतीनां शरीरम् ॥17॥ यस्य हस्ते द्रव्यं स जयति ।।।
अन्वयार्थ :- (यः) जो (प्रत्यहम्) प्रतिदिन (काकिण्यः) कौड़ी-कौड़ी (अपि) से भी (कोशम्) खजाने को (न) नहीं (वर्धयति) बढ़ाता है (तस्य) उस राजा के (आयत्याम) भविष्य में (कतः) कहाँ से (श्रेयांसि) कल्याण हो । ॥ (भूपतीनाम्) राजाओं का (हि) निश्चय से (कोश:) खजाना (जीवनम्) जीवन है (प्राणा:) प्राण (न) नहीं है 15 ॥ (क्षीणकोश:) रिक्त खजाने वाला (राजा) नृपति (हि) निश्चय (पौरजनपदान्) नगरवासियों को (अन्यायेन) अन्याय से (ग्रसते) पीड़ित कर मारता है (ततः) इसलिए (राष्ट्रशून्यता) जनहीन राष्ट्र (स्यात्) होगा ।।6 ॥ (कोश:) खजाना (राजा) भूपाल (इति) है ऐसा (उच्यते) कहा जाता है (भूपतीनाम्) राजाओं का (शरीरम्) शरीर (न) राजा नहीं है ।171 (यस्य) जिसके (हस्ते) हाथ में (द्रव्यम्) धन है (सः) वह (जयति) विजयी होता है 18॥
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