Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
कोश - समुद्देशः
"कोष" का अर्थ, गुण व राजकर्तव्य :
यो विपदि सम्पदि च स्वामिनस्तंत्राभ्युदयं कोशयतीति कोशः ।।1॥ सातिशयहिरण्य रजतप्रायो व्यावहारिकनाणक बहुलो महापदि व्ययसहश्चेति कोशगुणाः ।।2॥ कोशं वर्धयन्नुत्पन्नमर्थमुपयुञ्जीत ।।३॥
अन्वयार्थ :- (यः) जो (विपदि) आपत्ति में (च) और (सम्पदि) सम्पत्ति में (स्वामिनः) राजा की (तन्त्र) चतुरंग सेना के (अभ्युदयम्) उत्थान को (कोशति) बृद्धिंगत करता है (इति) वह (कोशः) कोश है ।।1 1 [यस्मिन्] जिसमें (सातिशयः) विशेष (हिरण्यः) सुवर्ण (रजत:) चाँदी (प्रायः) बहुतायत से (व्यावहारिक नाणकबहुल:) प्रतिदिन व्यवहार में चलने वाले सिक्कों का संग्रह हो जो (महापदि) संकट समय (व्ययसह) अधिक खर्च के साथ (च) और समर्थ रहे (इति) ये (कोशगुणाः) कोश के-खजाने के गुण हैं 12 ॥ (कोशंम्) कोष को (वर्धयन्न्) बढ़ाते हुए (उत्पन्नम्) उत्पत्ति के साधन अन्नादि, व्यापार, चुंगी द्वारा (उपयुञ्जीत) वृद्धि करे ।।
विशेषार्थ :- जो राजा को संकट व निष्कण्टक समय में राजतन्त्र-गज, अश्व, पैदल, रथ सेना की वृद्धि व पुष्टि करता है, उसे सुगठित करने को धन संचय करता है उसे कोष या खजाना कहते हैं । राजकीय धन सम्पत्ति के समन्वित-एकत्रित करने का स्थान खजाना कहलाता है ।। शुक्र विद्वान ने भी कहा है :
आपत्काले च सम्प्रासे सम्पत्काले विशेषतः । तन्त्रं विवर्धयते राज्ञां स कोशः परिकीर्तितः ॥
अब कोष के गण बताते हैं । कोष संकट काल में वद्ध की लकडी के समान सहारा प्रदान करता है । जिसमें अधिक मात्रा में सोना, चाँदी, माणिक आदि रत्नों का सञ्चय हो, नित्य व्यवहार में चलने वाले रुपये, पैसे आदि सिक्कों नोटो का पूर्ण सञ्चय हो, पर्याप्त मात्रा में संग्रह पाया जाता हो, जिससे विपत्तिकाल अधिक खर्च कर कार्यसिद्धि की जा सके । ये कोष के गुण हैं । इस प्रकार संचित धन राशि से राजा व प्रजा दोनों का कल्याण होता है । राज कोष से राजा व राज्य का वैभव आंका जाता है 12॥ गुरु विद्वान ने भी लिखा
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