Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
इसका कथानक है :
कोई एक दरिद्र ब्राह्मण हाथ में ताम्र बर्तन लेकर स्नान करने सागर में गया । उसके उस पात्र को कोई चुरा न ले जाय इस भय से समुद्र तट पर बालु में छुपा कर रख दिया । उसकी (स्थान) परीक्षा-जानकारी के लिए एक-लिङ्ग का चिन्ह बनाकर स्नान करने चला गया । इसी समय वहाँ और भी अनेक लोग नानार्थ आये। उन्होंने वहाँ बालू के ढेर पर ब्राह्मण द्वारा बनाया गया शिवलिङ्ग का चित्र देखा । उन्होंने विचार किया आज के पर्व का यही "कल्याणकारी" क्रिया है । अतः सभी ने अपने-अपने कल्याणार्थ बहुत से लिङ्ग बना डाले । हर एक ने एक-एक लिंग बनाया पर लोग बहुत होने से बहुत से हो गये । अब ब्राह्मण देव नान करके आया तो उसे उसका बनाया लिंग प्राप्त नहीं हुआ, उसका ताम्रपात्र गुम हो गया । निष्कर्ष यह निकला कि जनसाधारण परीक्षक न होकर देखा-देखी करते हैं ।
"इति विचार-समुद्देश 15॥" इति श्री परम पूज्य प्रातः स्मरणीय विश्ववद्य चारित्र चक्रवर्ती मुनि कुञ्जर समाधि सम्राट् महातपस्वी, वीतरागी, दिगम्बराचार्य श्री 108 आदिसागर जी महाराज अंकलीकर के पट्टाधीश परम् पूज्य परम् पूज्य तीर्थ भक्त शिरोमणि, समाधि सम्राट् आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी महाराज की संघस्था परम् पूज्य प्रथमगणिनी 105 आर्यिका विजयामती "शिष्या श्री सन्मार्गदिवाकर प.पू. आचार्य विमल सागर जी" ने हिन्दी विजयोदयटीका का 15वां समुदेश श्री परम पूज्य तपस्वी सम्राट् सिद्धान्त चक्रवर्ती आचार्य श्री 108 सन्मति सागर जी महाराज के पावन चरणारविन्दद्वय के सान्निध्य में समाप्त किया
॥ ॐ शुभम ॐ ।।
10 ॥
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