Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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| नीति वाक्यामृतम्
लञ्चनद्वारमाश्रित्य यो राजोत्थधनं हरेत् । न तस्य किंचित् कल्याणं कदाचित् संप्रजायते ॥
अर्थ वही है। देवतापि यदि चौरेषु मिलति कुत्तः प्रजानां कुशलम् ।।2।। अन्वयार्थ :- (यदि) अगर (देवता) देव (अपि) भी (चौरेषु) चोरों में (मिलति) मिलता है (कुतः) कहाँ (प्रजानाम्) प्रजा की (कुशलम) कुशलता है ? उसी प्रकार स्वयं राजा ही रिश्वतखोरों से मिल जाय, लूट-पाट कर धन हड़पने का प्रयास करे तो प्रजा की सहायता कौन करेगा ? कौन उसका रक्षक हो? बाद ही खेत खाने । लगे, सरोवर ही अपने जल पीने लगे तो फिर बताओ स्वयं राजा के टुटेरा हो जाने पर प्रजारक्षक कौन बने 142 || अत्रि ने लिखा है :
राज्ञो लुञ्चा प्रवृत्तस्यकीहक् व्याजनता सुखम् ।
यथा दुर्गाप्रसादेन चौरोपरि कृतेन च 111॥ रिश्वत व लूटमार आदि घृणित उपाय द्वारा प्रजा का धन अपहरण करने वाला राजा अपने देश (राज्य) खजाना, मित्र, सैन्य नष्ट कर देता है ।43 ।। सूत्र निम्न है :
लुञ्चेनार्थोपाश्रयं दर्शयन् देशं कोशं मित्रं तन्त्रं च भक्षयति 143 ।। अन्वयार्थ :- (लुञ्चेन) लूटमार से (अर्थोपाश्रयम्) धनोपार्जन करता है यह (दर्शयन्) दिखाता हुआ (देश) देश को (कोशं) खजाने को (मित्रम्) मित्र (च) और (तन्त्रम्) तन्त्र को (भायात) भक्षण करता है 143 ॥ विशेष ऊपर लिखा है ।। भागुरि ने भी लिखा है :
दर्शनं लुचनार्थस्य यः करोति महीपतिः । स देश कोश मित्राणां तन्त्रस्य च क्षयंकरः ।।
___ आगे दृष्टान्त निम्न है :राज्ञोऽन्यायकरणं समुद्रस्य मर्यादालड्यनमादित्यस्य तमः पोषणमिवमातुश्चा पत्य भक्षणमिव कलिकाल विजृम्भितानि 1440
अन्वयार्थ :- (राज्ञः) राजा का (अन्यायकरणम्) अन्याय करना (समुद्रस्य) सागर का (मर्यादा) सीमा (लयनम्) उलंघन (आदित्यस्य) सूर्य का (तमः) अंधकार (पोषणम्) विस्तृत करने (इव) समान (च) और (मातुः) माता का (अपत्य) पुत्र (भक्षणम्) भक्षण (इव) समान प्रवृत्ति (कलिकाल) कलि दोष (विजृम्मतानि) फैल रहा है 144॥
विशेषार्थ :- भूपाल द्वारा प्रजा के साथ अन्याय लूट-पाटआदि करना, मानों सागर की मर्यादा उल्लंघन,
द्वारा अंधकार विस्तार करना, माता को अपने भक्षण पुत्र का भक्षण करना के समान है, कौन निवारण करे? le
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