Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
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के समक्ष प्रकट कर समस्त राजकीय धन-सम्पदा को हड़प कर जाता है, अत: उपकारी को अधिकारी नहीं बनाना चाहिए ।24। वशिष्ठ विद्वान ने भी इसी प्रकार कहा है :
पूर्वोपकारिणं भूपो नाधिकारे नियोजयेत् । स तं कीर्सयमानस्तु सर्व वित्तं प्रभक्षयेत् ।।1।।
उपर्युक्त अर्थ है।
आगे कहते हैं कि राजा को ऐसे बाल मित्र को जो उसके साथ धूल में खेला है, अथवा साथ-साथ विद्याभ्यास किया है (ऐसे) उसे अर्थ सचिवादि पदासीन नहीं करे । वह "अति परिचयादवज्ञा" के अनुसार राजाज्ञा का निशंक उलंघन करेगा । अभिमानवश स्वयं को राजा समान मान बैठेगा ।B5 || जैमिनि विद्वान ने भी कहा है :
बाल्यात्प्रभृति यः सार्द्ध क्रीडितो भूभुजा सदा ।
स च स्यान्मत्रिणः स्थाने तन्त्रूनं पार्थिवायते 1115॥ क्रूर हृदय वाला पुरुष राज अधिकारी बना तो राज्य में समस्त अनर्थों का जन्म होगा । क्योंकि वह किसी की सुख सुविधा का विचार ही नहीं करेगा 1136 ॥ गर्ग विद्वान ने कहा है :
अन्तर्दुष्टममात्यं यः कुरुते पृथिवीपतिः ।
सोऽनान्नित्यशः कृत्वा सर्वराज्यं विनाशयेत् ।। दुष्टाभिप्रायी नित्य ही खुरापातों द्वारा राज्य और राजा का सर्व विनाश कर देगा 185 ॥ इस राजद्वेषी क्रूर के पदाधिकारी से होने वाली हानि के निदर्शन हैं - शकुनि - यह दुर्योधन का मामा जिसे इसने कौरवों का राजमंत्री
और शकटाल (नन्द राजा का मंत्री) । ये दोनों ऐतिहासिक निदर्शन हैं ।। इन दोनों ही दुष्ट हृदय वाले मंत्रियों ने अपने-अपने स्वामियों से द्वेष कर राज्य में अनेक अनर्थ उत्पन्न किये । जिनके फलस्वरूप राज्य की क्षति हुई 137 ॥ शकुनि का वृत्तान्त :
यह गांधार देश के राजा सुबल का पुत्र व दुर्योधन का मामा था, जो कि कौरव (धृतराष्ट्र) के बड़े पुत्र दुर्योधन द्वारा राजमन्त्री पद पर नियुक्त किया गया था । वह बड़ा क्रूर हृदय था । जिस समय पाण्डवों के वनवास को - अज्ञातवास की अवधि पूर्ण हुई उस समय महात्मा कृष्ण और विद्वान नीति निपुण विदुर ने इस मन्त्री को बहुत कुछ समझाया कि आप कौरवों से पाण्डवों का राज्य वापिस दिलवा दो । परन्तु इसने एक न मानी और पाण्डवों से वैर-विरोध रखा, दुर्योधन को सन्धि नहीं करने दी । फलतः महाभारत युद्ध हुआ । जिसमें इसने अपने स्वामी दुर्योधन का वध करवाया। और स्वयं भी मारा गया ।। दूसरा दृष्टान्त शकटाल का है :
यह ई. से 330 वर्ष पूर्व राजा नन्द का मन्त्री था, जो कि बड़ा दुष्ट हृदयी था । इसे अपराधवश कारागार __ की कड़ी सजा हुई। कुछ दिनों पश्चात् राजा ने इसे जेल से मुक्त कर दिया। पुनः राजमंत्री पद पर नियुक्त किया ।
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