Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
(18)
अमात्य समुद्देश
सचिव (मंत्री) महामात्म्य-बिना राज्यकार्य हानि व दृष्टान्त
___ चतुरङ्गेऽस्ति द्यूते नानमात्योऽपि राजा किं पुनरन्यः ।।1 ॥ पाठान्तर "चतुरङ्ग युतोऽपि नानमात्यो राजास्ति, किं पुनरेकः" दृष्टान्त छोड़कर एक हो अर्थ है ।
अन्वयार्थ :- (चतुरङ्गे) हाथी, घोड़ा, रथ, फ्यादे (अस्ति) है (धूते) जुआ में (न अमात्यः) मंत्री नहीं होने पर (अपि) भी (राजा) बादशाह (न) नहीं होता (किम्) क्या (अन्यः) दूसरा (पुनः) फिर हो सकेगा ?
विशेषार्थ :- जिस प्रकार शासन में राजा की हस्ति, घोटक, स्यन्दन एवं पयादे यह चार प्रकार की सेना होती है, उसी प्रकार शतरंज के खेल में भी ये हाथी, घोड़े आदि रहते हैं । यदि मन्त्री न हो तो बादशाह विजय प्राप्त नहीं कर सकता - अर्थात् खेल का बादशाह आदि प्रतिद्वन्दियों को मन्त्री बिना परास्त नहीं कर सकते तो क्या पृथ्वीपति गजाश्व, रथ-पयादे चतुरमा बल सहित होकर भी योग्य अमात्य-मन्त्री के बिना शत्रु को परास्त कर विजय श्री प्राप्त कर सकता है? राजा हो सकता है? नहीं In II गुरु विद्वान ने भी इसका समर्थन किया है :
चतुरङ्गेऽपि नो घूते मन्त्रिणा परिवर्जितः । स्वराज्यं कर्तुमीशः स्यात् किं पुनः पृथिवीपतिः ॥
तथाहि: नैकस्य कार्य सिद्धिरस्ति ।।2॥ नहोकं चक्रं परिभ्रमति ॥3॥ किमवातः
सेन्धनोऽपि वह्निचलति I4॥ अन्वयार्थ :- (एकस्य) अकेले की (कार्यसिद्धिः) कार्य पूर्ति (न) नहीं (अस्ति) होती है ।।2।। (एकम्) अकेला (चक्रम्) पहिया (न) नहीं (परिभ्रमति) घूमता है । ॥ (किम्) क्या (अवातः) वायुहीन (स इन्धनः) ईंधन सहित (अपि) भी (वह्नि) अग्नि (न) नहीं (ज्वलति) जलती है ।
विशेषार्थ :- जिस प्रकार शकट (गाड़ी) का एक चक्र (पहिया) दूसरे की सहायता बिना नहीं चल सकताघूम सकता उसी प्रकार अकेले राजा से मन्त्री बिना राज्य शासन भी नहीं चल सकता है ।।2 || कहावत है "अकेला ।
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