Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
सौम्य धातु वलात् सर्वे वलवन्तो हि धातवः ।
तं रक्षति यतः सिंहो लघुस्तुङ्गेन सोऽधिकः ।।2॥ अर्थ :- वीर्य क्षय से सर्व धातुएँ नष्ट होती हैं, इसलिए मूल का नाश नहीं करना चाहिए । वीर्य के बलवान रहने से अन्य सभी धातु बलिष्ठ रहती हैं । सिंह अपने वीर्य का रक्षण कर गज से अधिक बलिष्ठ होता है ।1-2॥
(पानशौण्डः) मद्यपीने वागा (पित्तविकार ना होने से मातरम्) माता को (अपि) भौ (गच्छाति) भोगने जाता है ।8।।
शराबी पुरुष मानसिक विकार-नशा चढ़ने से माता को भी सेवन करने में नहीं चूकता । अत: इस प्रकार के अनर्थकारी शराब का सर्वथा त्याग करना श्रेयस्कर है ।18॥ नारद ने भी कहा है :
यदा स्यान्मधमत्तस्तु कुलीनोऽपि पुमांस्तदा ।
मातरं भजते मोहत्तस्माद्युक्तं निषेवयेत् ।।1॥ अर्थ उपर्युक्त है । अत: सर्वथा कुलीनों को इसका त्याग करना चाहिए 18 ॥
(मृगयासक्तिः) शिकार में आसक्त मनुष्य (स्तेन) चोर-डाकू (व्याल-द्विषद्) सिंह, व्याघ्रादि (दायादाम्) कुटुम्बी एवं (आभिषम्) मांसाहारियों में प्रवृत्ति (करोति) करता है ।।
शिकार व्यसन में फंसे मनुष्य को चोर, डाकू, सिंह, व्याघ्र, कुटुम्बी मांसाहार बना लेते हैं अर्थात् मार डालते हैं ।।9॥ भारद्वाज के उद्धरण में भी यही भाव है :
मृगयाव्यसनोपेतः पुरुषो वधमाप्नुयात् ।
चौर व्यालारिदायादपाश्र्वादेकतमस्य च ।।1॥ (धूताव्यसनस्य) जुआरी के (किम् अपि) कुछ भी (अकृत्यम्) नहीं करने योग्य (न अस्ति) नहीं है। no || (हि) निश्चय से (भातरि) माता के (अपि) भी (मृतायाम्) मरने पर (कितव:) जुआरी (दिव्यति) जुआ खेलता (एव) ही है In1||
संसार में ऐसा कौन अनर्थ-पाप है जिसे जुआरी नहीं करता हो और तो क्या माता का मरण होने पर भी वह द्यूत खेलना बन्द नहीं करता । सारांश यह है कि जुआरी कर्तव्यबोध से च्युत हो जाता है । अतः इसका त्याग ही करना चाहिए 10-11॥ शक्र ने कहा है :
सानुरागोऽपि चेन्नीवीं पल्याः स्पृशति कहिचित् ।
तविन्ने च्छते साधुर्वस्त्राहरणशंकया ।।1॥ जुआरी इतना अविश्वस्त हो जाता है कि "यदि उसकी पत्नी का भी वह प्रेम से पल्ला पकड़ता है तो वह
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