Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्।
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को उसका दर्शन सुलभता से प्राप्त होता रहे और उनका प्रेम व विश्वास भी दृढ़ बना रहे ।33 || गर्ग विद्वान ने कहा है :
मुक्त्वावसरमेकं च द्वारं गुप्त प्रकारयेत् । प्रस्तावेऽपि परिज्ञाते न दृष्टव्यो महीभुजा ॥
अर्थ :- एक अवसर के अतिरिक्त राजा सदैव अपना द्वार सुरक्षित रखे । व अवसर आने पर भी प्रजा को दर्शन नहीं दे तो निश्चय से प्रजा को दर्शन न देने वाला राजा का कार्य अधिकारी वर्ग स्वार्थ वश हो नष्ट कर देते हैं । एवं शत्रु वर्ग भी वलवा करने में तत्पर हो जाते हैं । अतः प्रजा को राजा का दर्शन सरलता से होना चाहिए ।।34॥ राजपुत्र और गर्ग ने कहा है कि :
ज्ञानिनं धनिनं दीनं योगिनं वार्त्ति संयुतं । द्वारस्थं य उपपेक्षेत स श्रिया समुपेक्ष्यते ।।1।। स्त्री रामालत चिनो यः क्षितिपः संप्रजायते ।
वामतां सर्वकृत्येषु सचिर्नीयते अरिभिः ॥1॥ अर्थ :- जो पृथ्वीपाल अपने द्वार पर आये हुए विद्वान, धनाढ्य, दीन (गरीब), साधु व पीड़ित पुरुष की उपेक्षा करता है उसे लक्ष्मी उपेक्षा कर त्याग देती है । स्त्रियों में आसक्त रहने वाले राजा के कार्य मन्त्रियों द्वारा नष्ट-भ्रष्ट कर दिये जाते हैं और वह शत्र प्रिय हो जाता है अर्थात शत्र उसे परास्त कर आनन्दित होते हैं सारांश यह है कि राजा को प्रकृति से काम लेना चाहिए परन्तु उन पर विश्वास कर अधिकार नहीं छोड़ना चाहिए, तभी राज्य में अमन-चैन रह सकता है ।।4।।
श्रीमन्तों के रोगों की वृद्धि कर धनार्जन का वैद्यों को अन्य कोई साधन नहीं है उसी प्रकार राजा को व्यसनों में फंसाकर अधिकारियों को भी यही एक आजीविका का साधन है । सारांश यह है कि अशिष्ट भिषक् (वैद्य) अवैद्य-विपरीत चिकित्सा कर धनेश्वरों से फीसादि लेते रहते हैं उसी प्रकार दुष्ट, वंचक मंत्री आदि अधिकारी वर्ग अपने राजा को व्यसनासक्त कर उसकी राज्य सम्पदा को हड़पने का घृणित उपाय करते हैं । अतः राजा को उनसे सावधान रहना चाहिए जिससे कि वे रिश्वतखोर न बन सकें 135॥ रैम्य विद्वान ने भी कहा है:
ईश्वराणां यथा व्याधि बंधानां निधिरुत्तमः । नियोगिनां तथाज्ञेयः स्वामिव्यसन सम्भव ॥1॥
अर्थ :- जिस प्रकार धनवानों की चिकित्सा करने से भिषकों को विशेष अर्थ सम्पदा प्राप्त होती है उसी प्रकार राजा को व्यसनों में फंसाकर नौकरचाकराधिकारी वर्गों को विशेष सम्पत्ति प्राप्त होती है । 11 । राजकर्त्तव्य व घूसखोरी से हानि :
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