Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
का (नास्ति) पालन नहीं होता (क:) क्या (विशेष:) विशेषता है ? | 24 ॥ (राजाज्ञा) राजा की आज्ञा (अवरुद्धस्य) विरोधी का (तद्) उस (आज्ञाम्। आजा को (न भजेत, नहीं पाने, उसका पक्ष नहीं लेवे 125 ॥ (परमर्म:) दूसरे की गुप्त (अकायम्) व्यर्थ (च) और (अश्रद्धेयम्) श्रद्धान के अयोग्य (न भाषेत) वचन नहीं बोले 126॥
विशेषार्थ :- राजा का कर्तव्य है कि अपने आज्ञा विरोधी पुत्र की भी उपेक्षा न करे । अर्थात् पुत्र को भी अपराध करने पर न्यायोचित दण्ड देना चाहिए । नारद विद्वान ने कहा है :
आज्ञाभंगो नरेन्द्राणामशस्त्रोवधमुच्यते । प्राणार्थिभिर्न कर्त्तव्यस्तमात्सोऽत्रकथंचन 11॥
अर्थ :- राजाज्ञा का उल्लंघन करना, बिना शस्त्र के मरण बुलाना है । अतः जीवन की इच्छा करने वालों को कभी भी राजा की आज्ञा का उल्लंघन-विरोध नहीं करना चाहिए | 1 | नीतिकारों को राजा की आज्ञानुसार चलना चाहिए ।23॥
जिन राजाओं की आज्ञा का राज्य में पालन नहीं होता उनमें और चित्र में चित्रित राजा में क्या अन्तर है? कुछ भी नहीं । गुरु विद्वान ने भी कहा है :
यस्याज्ञां नैव कुर्वन्ति, भूमौ भूपस्य मानवाः । आलेख्यगः स मन्तव्यो न मनुष्यः कथंचन ।।
अर्थ :- जिस राजा की आज्ञा का प्रजा जन अनुसरण नहीं करती उस राजा के जीवन से क्या प्रयोजन ? उसे चित्र में (फोटो) लिखा हुआ समझना चाहिए, जीवन्त मनुष्य नहीं । अर्थात् - आज्ञा का पालन यदि नहीं हो तो उस राज्य से और नृप से क्या कार्य सिद्धि है? उसे मृतक समान समझना चाहिए 11241 जो पुरुष राजदण्ड में कारागार की सजा प्राप्त है, उसका पक्ष कभी नहीं लेना चाहिए अन्यथा पक्ष लेने वाला भी अपराधी समझा जायेगा । भारद्वाज ने भी कहा है :
विरुद्धो वर्तते यस्तु भूपते सह मानवः ।
तस्याज्ञां कुरुते यस्तु स दण्डोर्यो भवेन्नरः ।।1॥ अर्थ :- जो व्यक्ति राजा के साथ विरुद्ध प्रवृत्ति करता है और जो उस विरोधी का साथ देता है वे दोनों ही दण्ड के पात्र होते हैं । इसलिए राजद्रोही का कभी भी पक्ष नहीं लेना चाहिए 125 ॥
सदाचारी, नीतिज्ञ मनुष्य को किसी की निरर्थक व अविश्वासकारी गुप्त बात को प्रकट नहीं करना चाहिए ।।26 !! भागुरि विद्वान ने भी कहा है :
परमर्म न वक्तव्यं कार्य वाह्यं कथंचन । अश्रद्धेयं च विज्ञेयं य इच्छेद्धितमात्मनः ।1॥
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