Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
भी सोचती है कि कहीं मेरा वस्त्र छीनकर इसे भी दाव पर न लगा दे ।" मेरी सुन्दर साड़ी का अपहरण कर लेगा, अत: उससे प्रेम नहीं करती 11 ॥
(पिशुनः) चुगलखोर (सर्वेषाम्) सर्वजनों को (अविश्वास) अप्रतीति (जनयति) उत्पन्न करता है 1112॥ चुमली करने वाला समस्त लोगों में अविश्वास उत्पन्न करता है । गली में नियम से कपट रहता है, कपटी का वचन सत्य रूप नहीं होता अतः वह किसी का भी विश्वास पात्र नहीं बन सकता Im2 || वशिष्ठ विद्वान ने भी ऐसा ही कहा है :
विद्वानपि कुलीनोऽपि राजाने चैव पैशुनम् ।
यः करोति नरो मूर्खस्तस्य कोऽपि न विश्वसेत् ॥ राजा के समक्ष भी यदि चुगली करता है तो वह मूर्ख सभी का अविश्वास पात्र हो जाता है अर्थात् उसका कोई भी विश्वास नहीं करता है ।। ||
(दिवास्वापः) दिन में सोने वाला (गुप्त व्याधि व्यालानाम्) छिपी व्याधि रूपी सो को (उत्थापन दण्डः) जगाने वाला है (च) और (सकलकार्याणाम्) समस्त कार्यों की सिद्धि का (अन्तरायम्) विघ्न कर्ता है 113॥
दिवस काल में निद्रा लेना शरीर में अनेकों रोगरूपी सपों को जगाने का कारण है । और समस्त कार्यसिद्धि में बाधक है । निष्कर्ष यह है कि स्वास्थ्य व कार्य सिद्धि निमित्त दिन में शयन का त्याग करे ।। धनवन्तरि ने भी कहा है कि :
ग्रीष्मकालं परित्यज्य योऽन्यकाले दिवा स्वपेत् ।
तस्य रोगोः प्रवर्द्धन्ते यः स याति यमालयम् ॥ अर्थात् ग्रीष्मकाल को छोड़कर जो अन्य ऋतुओ में दिन में सोता है उसके रोगों की वृद्धि होती है और वह नियम से यमलोक की यात्रा करता है 11॥
(परपरिवादात्) दूसरों की निन्दा से (परम्) अधिक (सर्व विद्वेषण) सबके साथ द्वेष करने की (भेसजम्) औषधि (न) नहीं (अस्ति) है 114॥
संसार में दूसरे की निन्दा के अतिरिक्त सबसे द्वेष करने की अन्य कोई औषधि नहीं है ।। अर्थात् जो मनुष्य परनिन्दा करता है सारा संसार उसका शत्रु बन जाता है । अथवा यों कहें या समझें कि जिसकी पर की निन्दा कर रहा है उसकी हम प्रशंसा करें तो वह निन्दा करना छोड़ देगा, यही निन्दक को प्रशंसक बनाने की अमोध औषधि है 14॥ हारीत विद्वान ने भी इसी अभिप्राय को कहा है:
क्षयव्याधि परीतस्य यथा नास्त्यत्र भेषजम् । परीवादप्रयोगस्य स्तुतिं मुक्त्वा न भेषजम् ॥1॥
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