Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
वृद्धि का ज्ञान और विनम्रता ये गुण पाये जाते हैं, वे भविष्य में राजा होते हैं ।।1 ॥ अनुमान का लक्षण :- व फल :
कर्मसु कृतेनाकृतावेक्षणमनुमानम् ॥10॥
संभावितैकदेशोनियुक्तं विद्यात् 11॥ अन्वयार्थ :- (कृतेन) किये हुए (कर्मसु) कार्यों में से (अकृत) नहीं किये (आवेक्षणम्) कार्य का बुद्धि से निश्चय करना (अनुमानम्) अनुमान प्रमाण है । (एकदेशः) एक देश (संभावितः) संभावना (नियुक्तम्) निश्चय (विद्यात्) अनुमान ज्ञान 11॥
विशेषार्थ :- बहुत से कार्य समाप्त हो चुके । उनमें से किसी एक दो कार्यों द्वारा नहीं किये गये कार्य का बुद्धि द्वारा निर्णय या निश्चय करना "अनुमान" ज्ञान है ।। सारांश यह है कि किसी के एकदेश कार्य की निर्विघ्न समाप्ति देखकर उसके अन्दर पूर्ण कार्य की क्षमता का-कुशलता का निर्णय करना 'अनुमान' प्रमाण है moni आगे भवितव्यता-प्रदर्शक चिन्ह- कहते हैं :
प्रकृतेर्विकृति दर्शनं हि प्राणिनां भविष्यतः शुभाशुभस्य चापि लिङ्गम् ॥12॥
अन्वयार्थ :- (हि) निश्चय से (प्राणिनाम्) मनुष्यों की (प्रकृतिः) शुभाकृति (विकृत्तिः) अशुभ (दर्शनम्) दिखाई देना (भविष्यतः) आगे होने वाले (शुभः) अच्छे (च) और (अशुभः) बुरे का (अपि) भी (लिङ्गम्) चिन्ह हैं ।12॥
विशेषार्थ :- शुभ व अशुभ स्वभाव मनुष्य का किस प्रकार परिवर्तित हो रहा है यह देखकर उसके भविष्य सम्बन्धी शुभाशुभ कार्यों का ज्ञापक समझना चाहिए । सारांश यह है कि कोई सत्पुरुष वर्तमान में अपने सदाचार शिष्टाचार व शीलाचारादि उत्तम गुणों से विपरीत मार्ग की ओर जाना चाहता है तो समझना चाहिए कि उसका भविष्य अंधकारमय है - होनहार बुरी है । इसी प्रकार यदि कोई अनीति या दुर्नीति का सत्सङ्गति से त्याग कर रहा है तो समझना चाहिए कि उसका होनहार बुरा नहीं है - अच्छा है ।12।। नारद विद्वान ने कहा है :
शुभभावोमनुष्याणां यदा पापे प्रवर्तते ।
पापो वाथ शुभे तस्य तदा अनिष्टं शुभं भवेत् ॥ अर्थ :- जिस समय मनुष्य का शुभ भाव पाप या अशुभ में परिवर्तित होने लगता है तो समझना चाहिए उसका अनिष्ट-बुरा होने वाला है । यदि अशुभ भाव शुभ में परिणमन हो अर्थात् शुभ कार्यों में प्रवृत्त हो तो समझना चाहिए कि उनका कल्याण होने वाला है ।। क्योंकि कहा है "जऊ मई लई गई" जैसी मति तैसी गति" । अर्थात् जैसी बुद्धि होती है वैसी ही गति हो जाती है ।।12॥ बुद्धि का प्रभाव :
य एकस्मिन् कर्मणि दृष्ट बुद्धिः पुरुषकारः स कथं कर्मान्तरेषु न समर्थः ॥ 13॥
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