Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
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पुरोहित - समुद्देश
पुरोहित राजगुरु का लक्षण :
पुरोहितमुदितोदित कुलशीलं षडंगवेदेदैवे निमित्तेदण्डनीत्यामभिविनीतमापदां दैवीनां मानुषीनां च प्रतिकर्तार कुर्वीत ॥
अन्वयार्थ :- (उदितकुलशीलम्) जो शुद्धकुल, सदाचारी (षडंगवेदे) राजनीति के छ अंग, चार वेद, (दैवे) निमित्त में (निमित्ते) स्वप्नादि फल ज्ञान (दण्डनीत्याम्) दण्डनीति में (अभिविनीतम् आपदाम्) मानुषी आपदा दूर करने में (दैवीनाम्) देवकृत (मानुषीणाम्) मनुष्यकृत (च) और (प्रतिकर्तारम्) अन्य भी प्रतिकार करने में समर्थ (पुरोहितम्) राजगुरु (उदितः) पदासीन (कुर्वीत) करना योग्य है ।
विशेष :- जो कुलीन, सदाचारी, शिक्षा-शिल्प-व्याकरण-निरुक्ति-छंद व ज्योतिष इन वेदाङ्गो का ज्ञाता, ऋवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, व सामवेद अथवा प्रथमानुयोग चरणानुयोग, करणानुयोग व द्रव्यानुयोग का ज्ञाता, ज्योतिष, निमित्त और दण्डनीति विद्या प्रवीण एवं दैवी उल्कापातादि का ज्ञाता. मानुषी आपत्तियों को दर करने में समर्थ हो ऐसे योग्य पुरुष को राजपुरोहित बनाना चाहिए ।। || शुक्र विद्वान ने कहा है :
दिव्यान्तरीक्ष भीमानामुत्पातानां प्रशान्तये ।
तथा सर्वापदां चैव कार्यों भूपैः पुरोहितः ।।1। अर्थ :- राजाओं को देव, आकाश, नक्षत्र, भूमि पर होने वाले समस्त उपद्रवों के शान्त करने के लिए एवं सर्व आपदाओं के निवारणार्थ पुरोहित नियुक्त करने चाहिए । अर्थात् उपर्युक्त विषयों के ज्ञाता पुरोहित होने योग्य होते हैं । मंत्रपुरोहित के प्रति राजकर्तव्य :
राज्ञो हि मंत्रिपुरोहितौ माता-पितरौ, अतस्ती न केषुचिद्वाञ्छितेषु विस्तरयेत् ।।2। पाठान्तर-विसूरयेत्, दु:खयेत्, वादुर्विनयेत् हैं विस्तरयेत् के स्थान में |
अन्वयार्थ :- (मंत्रिपुरोहितौ) मंत्र और पुरोहित (हि) निश्चय से (राज्ञः) राजा के (मातापितरौ) माता पिता (अतः) इसलिए (तौ) उनको (केषुचिद्) किसी भी (वाञ्छितेषु) अभिलषित कार्यों में (न विस्तरयेत्) निराश न
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करे ।
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