Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
नीति वाक्यामृतम्
पाठान्तर :
गुरु वचनमनुल्लंघनीयमन्यत्राधर्मानुचिताचारात् ॥ युक्तमयुक्तं वा गुरुरेव जानाति यदि न शिष्यः प्रत्यर्थवादी ।।10। गुरु जनरोषेऽनुत्तरदानपगात्तिा चौषधम् ।।11।। शत्रूणामभिमुखः पुरुषः श्लाध्यो न पुनर्गुरुणाम् ।।12॥ आराध्यं न प्रकोपयेद्यद्यसावाश्रितेषु कल्याणशंसी ।113॥
"कल्याणमाशंसति" भी है । गुरुभिरुक्तं नातिक्रमितव्यं, यदि नैहिकामुत्रिकफल विलोपः ।।14॥ सन्दिहानोगुरुमकोपयन्नापृच्छेत् ।।15 ॥ गुरुणां पुरतो न यथेष्टमासितव्यम्।।16।। पाठान्तर - उक्त पाठ मूल प्रतियों से संकलित है ।
नानभिवाद्योपाध्यायाद्विद्यामाददीत 1117॥"यधुक्ति-जाति, श्रुताभ्यामाधिक्यं समानत्वं वा ।" यह अधिक पाठ है ।।17॥
अध्ययनकाले व्यासङ्गं पारिप्लवमन्यमनस्कतां च न भजेत् ।।18॥ सहाध्यायिषु बुद्ध्यतिशयेन नाभिभूयेत ॥19॥"नाभ्यसूयेत्" यह भी है । प्रज्ञयातिशयानो न गुरुमवज्ञायेत ।20। “अवलादयेत् ।।" पाठान्तर है ।।
अन्वयार्थ :- (युक्तम्) उचित (अयुक्तम्) अनुचित (वा) अथवा (गुरुः) गुरु (एव) ही (जानाति) जानता है (यदि) अगर (शिष्यः) विद्यार्थी (प्रत्यर्थवादी) विपरीत बोलने वाला (न) नहीं हो 1110॥ (गुरुजनरोषे) गुरुजनों के कुपित होने पर (अनुत्तरदानम्) प्रति उत्तर नहीं देने वाला (च) और (अभ्युप पत्तिः) उनकी सेवा करना (औषधम्)
1॥ (शत्रणाम) वैरियों के (अभिमख:) समक्ष आने वाला (पुरुषः) व्यक्ति (श्लाध्य:) प्रशंसनीय है (न) नहीं (पुन:) फिर (गुरुणाम्) गुरुजनों के समक्ष ।।12 ॥ (आराध्यम्) पूज्यपुरुष को (प्रकोपयेत्) कुपित (न) नहीं करे (यदि) अगर (असौ) वह (आश्रितेष) अपने आधीनों का (कल्याणशंसी) उपकारक है ।।na || (गुरुभिः) गुरुओं द्वारा (उक्तं) कथित (न अतिक्रमितव्यम्) उल्लंघन नहीं करना चाहिए । (यदि) अगर (ऐहिक) इस लोक (अमुत्रिक) परलोक सम्बन्ध (फलम्) फल को (विलोपः) लोप (न) नहीं करना है 114 ॥ (सन्दिहानो) शंकायुक्त शिष्य (गुरुम्) गुरु को (अकोपयम्) क्रोधित न कर (आपृच्छेत्) पूछे ।।15 ॥ (गुरुणाम्) गुरुओं के (पुरतः) सामने (यथेष्टम्) मनमाना (न) नहीं (आसितव्यम्) बैठना चाहिए 116 ॥ (अनभिवाद्यः) नमस्कार किये बिना (उपाध्यातात) उपाध्याय से (विद्याम्) विद्या (न) नहीं (आददीत्) ग्रहण करे ।।17। (अध्ययन काले) पढ़ने के समय (व्यासगम्) अन्यकार्य, (पारिप्लवनम्) चपलता (च) और (आन्यमनस्कताम्) मानसिक चपलता (न) नहीं (भजेत्) करे ।।18 ॥ (सहाध्यायिषु) सहपाठियों का (बुद्ध्यतिशयेन) तीव्र बुद्धि से (न) नहीं (अभिभूयेत्)
301