Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
(14)
चार समुद्देश
गुप्तचरों का लक्षण, गुण, वेतन व उसका फल :
स्वपर मण्डल कार्याकार्यावलोकने चाराः खलु चक्षूंषि क्षितिपतीनाम् ॥1 ॥
अलौल्यममान्ध्रममृषाभाषित्वमभ्यूहकत्वं चारगुणाः 112 ॥ चाराणां वेतनम्
तृष्टिदानमेव
113 11
ते हि तल्लोभात् स्वामिकार्येषु त्वरन्ते
114 11
अन्वयार्थ :- (गुप्तचराः) गुप्तचर (स्व:) अपने (व) अथवा (परः) शत्रु के ( मण्डलस्य) मण्डल के कार्य का (कार्याकार्य) कार्य व अकार्य के ( अवलोकने) निरीक्षण में (खलु) निश्चय ही (चक्षुषि) आखें हैं ( क्षितिपतीनाम्) राजाओं की ॥11 ॥
विशेषार्थ :- गुप्तचर राजाओं के नेत्र समान होते हैं क्योंकि वे स्व और पर शत्रुओं के कर्त्तव्य, अकर्त्तव्य का निरीक्षण कर उन्हें सूचित करते हैं। राजनीति सम्बन्धी वृत्तान्त वे ही लाते हैं ।।1 ॥ गुरु विद्वान ने कहा है
स्व मण्डले परे चैव कार्याकार्यं च यद्भवेत् । चरैः पश्यन्ति यद्भूषा सुदूरमपि संस्थिताः | [1 11
अर्थ :- राजा लोग दूरदेशवर्ती होकर के भी स्वदेश, परदेश सम्बन्धी कार्य अकार्य शुभाशुभ कार्यों का दूतों द्वारा ही परिज्ञान करते हैं। गुप्तचर राजाओं के नेत्र हैं ॥11 ॥ (अल्यौल्यम्) सन्तोष (अमान्द्यम्) उत्साह (अमृषा) सत्य (भषित्वम्) बोलना ( अभ्यूहकत्वं ) कार्य अकार्य ज्ञान ( चारगुणाः) गुप्तचरों के गुण हैं ।
विशेषार्थ :- सन्तोष, निरालस्य उत्साह या निरोगता, सत्यभाषण और विचारशक्ति ये गुप्त चरों के गुण हैं। भागुरि विद्वान ने भी लिखा है :
अनालस्यमलौल्यं
च
सत्यवादित्यमेव अहकत्वं भवेद्येषां ते चराः कार्यसाधकाः
325
च
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