Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
तिरस्कार को 119 ॥ (प्रज्ञयातिशयानाः) तीक्ष्ण बुद्धि होने से (गुरुम्) गुरु को (अवज्ञायेत) तिरस्कृत (न) नहीं है [कुर्यात् ] करे । 20
विशेष :-- जप, दुरागार नीति और शुभकामों में चिन्न कारक बातों के अतिरिक्त अन्य सभी कार्यों में शिष्य को गुरुवाणी का उलंघन नहीं करना चाहिए । ॥ यदि गुरु से शत्रुता एवं वाद-विवाद नहीं करे तो उसके योग्यायोग्य समस्त कर्तव्यों को गुरु ही जानता है 10॥ गुरुजनों के कुपित होने पर शिष्य जबाव न दे और उनकी सेवा करे यह उनके कोप शान्ति की परम औषधि है I || शत्रुओं के समक्ष जाना उनका सामना करना प्रशंसनीय है परन्तु गुरु के सामने जाने वाला, उनसे विरोध करने वाला शिष्य निन्दा का पात्र है ।।12। अपने पूज्य गुरु व माता-पिता आदि अपना (शिष्यों) की हित की कामना करते हैं तो उन्हें रुष्ट नहीं करना चाहिए । अपने कल्याण कर्ताओं के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए |13|| जो पुरुष इस लोक व परलोक में सुखी रहना चाहता है उसे अपने गुरुजनों की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए |14 ॥ किसी विषय में शंका निवारणार्थ शिष्य विनयपूर्वक नम्रता से गुरु से प्रश्न करे In5 || शिष्यों को स्वेच्छानुसार गुरुजनों के समक्ष उद्दण्डता से नहीं बैठना चाहिए ।16।। प्रथम
कर ही विद्याग्रहण करना उचित है । नमस्कार किये बिना विद्या ग्रहण नहीं करना चाहिए ।17 || वशिष्ठ विद्वान ने भी कहा है :
नमस्कारं विना शिष्यों यो विद्याग्रहणं कियात् ।
गुरोः स तां न चाप्नोति शूद्रो वेदश्रुतिं यथा ॥ अर्थ :- जिस प्रकार शूद्र वेदश्रवण नहीं कर सकता, उसी प्रकार गुरु को नमस्कार किये बिना शिष्य को विद्या प्राप्त नहीं होती ।।1।।
विद्याध्ययन करने वाले विद्यार्थी को अध्ययन के अतिरिक्त कार्यों में संलग्न नहीं होना चाहिए । शारीरिक व मानानक चपलता त्याग एकान होकर अध्ययन करना चाहिए । चित्तवत्ति को अन्य चाहिए . 18 ।। गौतम कहते हैं :
अन्यकार्यं च चापल्यं तथा चैवान्य चित्तताम् । प्रस्तावे पठनस्यात्र यः करोति जडो भवेत् ।।1॥
अर्थ :- जो विद्यार्थी विद्यार्जन काल में अन्यकार्य, चित्तपापल्य, अन्यत्रचित वृत्ति लगाता है वह नियम से मूर्ख रह जाता है ।।
तीक्ष्णबुद्धि छात्रों को अपने सहपाठियों का तिरस्कार करना उचित नहीं 119 || गुरु विद्वान ने भी कहा
न सहाध्यायिनः कुर्यात् पराभवसमन्वितान् ।
स्वबुद्धयतिशयेनात्र योविद्यां वाञ्छति प्रभोः ।।1।। अर्थ :- गुरु के पास विद्या लाभ का अभिलाषी विशिष्ट बुद्धि वाला है । तीक्ष्ण बुद्धि होने पर भी उसे ।
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