Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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- नीति वाक्यामृतम् । विशेषार्थ :- कहा जाता है कि करहाट देश के राजा कैटभ ने वसुनाम के प्रतिद्वन्दी भूपाल के पास दूत द्वारा कुछ सुन्दर वस्त्र उपहार स्वरूप भेजे । वे वस्त्र विष द्वारा वासित-पुट किये गये थे अर्थात् बार-बार विषजल में डुबो फैलने वाले विष युक्त हो जाते हैं । वे बहुमूल्य वस्त्र भेंट में आये । राजा ने विचारे बिना उन्हें स्वीकार कर लिया और मृत्यु का वरण किया । अतः शत्रु कृत खतरे से रक्षित रहने के लिए राजा को लोभ त्याग कर परिक्षित वस्तुओं का ग्रहण करना चाहिए In6॥ इसी प्रकार और भी उदाहरण है :
आशीविषधरोपेतरत्नकरण्डक प्राभृतेन च करवाल: करालं जघानेति ॥7॥
अन्वयार्थ :- (आशीविषधरः) भयंकर विषधर से (उपेतः) सहित (रत्नकरण्डकः) रत्नों का पिटारा (प्राभुतेन) उपहार द्वारा (च) और (करवाल:) करवाल राजा ने (करालम्) कराल नामक राजा को (जघान इति) मार डाला ।
विशेषार्थ :- प्रतिद्वन्दी-शत्रु राजा करवाल ने दृष्टिविष वाले कराल राजा की भेंट में दूत द्वारा भेजा । कराल पृथ्वीपति ने अपने आत्मीयजनों के परामर्श के बिना स्वयं ही उस करण्ड को ग्रहण कर लिया । ज्यों ही उसे खोला कि उसके अन्दर विद्यमान आशीविष भुजंग ने उसे डस लिया । शीघ्र ही विष सर्वाङ्ग व्याप्त हो गया और कराल चिरनिद्रा (मृत्यु) वश हो गया ।। अतः राजा को निरन्तर सावधानी से परीक्षा कर ही शत्रु द्वारा प्रेषित वस्तुओं को स्वीकार करना चाहिए अन्यथा नहीं In7 दूत के प्रति राजा का कर्तव्य :- वध न करना, दूत लक्षण, वचन श्रवण :
महत्यपराधेऽपि न दूतमुपहन्यात् 18 ।।
उद्धतेष्वपि शस्त्रेषु दूतमुखाः वै राजनः ।।19॥ अन्वयार्थ :- (महति) भयंकर (अपराधे) अपराध करने पर (अपि) भी (दूतम्) दूत को (न) नहीं (हन्यात्) मारे ।।
विशेष :- भयंकर अपराध करने पर दूत का वध नहीं करना चाहिए । शुक्र ने भी इस विषय में कहा
दूतो न पार्थिवो हन्यादपराधे गरीयसि ।
कृतेऽपि तत्क्षणात्तस्य यदीच्छेद् भूतिमात्मनः ।।1।। अर्थ :- राजा यदि अपनी भलाई या कल्याण चाहता है तो उसे दूत द्वारा गुरुतर दोष-अपराध किये जाने पर भी उसका उस समय वध नहीं करना चाहिए । ॥
(उद्धृतेषु) उठाने पर (अपि) भी (शस्त्रेषु) शस्त्रेषु (दूतभुखाः) दूतों से समाचार पाने वाले (वै) ही (राजनः) राजा लोग [भवन्ति] होते हैं ।
विशेष :- सैनिकों द्वारा शस्त्र संचालन प्रारम्भ होने पर घोर युद्ध प्रारंभ होने पर भी राजा लोग दूत वचनों में द्वारा सन्धि-विग्रहादि का समाचार प्राप्त कर विजय लक्ष्मी प्राप्त करते हैं । संग्राम के बाद भी दूतों का उपयोग होता। है । अतः दूत कभी भी राजाओं द्वारा वध्य नहीं होता 9 || गुरु विद्वान ने भी कहा है :
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