Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
अन्ययार्थ :- ( श्रूयते) पुरातनपुरुषों से सुना गया कि ( किल) निश्चय से ( रजन्याम्) रात्रि में ( वटवृक्षे ) वटवृक्ष तले (प्रच्छन्नः) छुपे ( वररुचिर ) वर रुचि ने (प्र-शि-खे - ति) चार चरण के इन एक एक अक्षर को (पिशाचेभ्यो) पिशाचों द्वारा ( वृत्तान्तम् ) समाचार ( उपश्रुत्य ) सुनकर (चतुरक्षराद्यैः) चार अक्षरों द्वारा ( पादैः) पादों से (एकम् ) एक ( श्लोकम् ) श्लोक ( चकारेति ) रवलिया ।
वृक्ष पर बैठे पिशाच मंत्रणा कर रहे थे उनके प्रत्येक श्लोक पंक्ति के एक-एक अक्षर र-प्र-शि-खे-ति से श्लोक पूर्ण कर उनके अभिप्राय को ज्ञात कर लिया ।
विशेषार्थ :- वररुचि नामक एक राज्यमन्त्री ने वटवृक्ष पर बैठे पिशाचों का गुप्त कथन सुन लिया । हिरण्यगुप्त के द्वारा कहे श्लोक के प्रत्येक पाद के एक-एक अक्षर से पूर्ण श्लोक बना लिया और गुप्त रहस्य खोलकर मरवा डाला । पूर्ण वृत्तान्त निम्न प्रकार है :
वररुचि नंद राजा जो कि 322 ई. पू. में भारत का सम्राट् हुआ था मन्त्री है ॥
एक समय नन्द राजा का पुत्र राजकुमार हिरण्यगुप्त वन में क्रीडार्थ गया । उसने अपने मित्र को निद्रा में मार डाला। उस पुरुष ने मरते समय " अ-प्र-शि-ख" ये अक्षर उच्चरित किये थे । उसे सुनकर अपने प्रिय मित्र को धोखे से मारा गया समझ कर हिरण्यगुप्त मित्र के साथ द्रोह करने के पाप से ज्ञान शून्य, किंकर्तव्य विमूढ और अधिक शोक के कारण पागल की तरह व्याकुल होकर कुछ काल तक स्वयं भी उसी अटवी में भटकता रहा 1 पश्चात् राजकर्मचारियों ने अन्वेषणा कर उसे नन्द राजा के पास लाये । यह राजा सभा में लाया गया तो शोक से पीडित हो अ-प्र-शि-ख, अप्रशिख, वर्णों का बार-बार उच्चारण कर व्याकुल होने लगा । नन्द राजा इन अक्षरों का अर्थ नहीं समझा और उसने अपनी मन्त्री -पुरोहितों को अर्थ लगाने की आज्ञा दी, परन्तु वे भी मौन साध कर रह गये। उनमें से वररुचि नामक मन्त्री बोला, राजन् ! मैं एक दो दिन बाद इनका अर्थ समझाऊँगा । इस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर वह उसी वन में वटवृक्ष के नीचे जाकर छुप गया । वहाँ उसने रात्रि में पिशाचों के द्वारा उक्त वृत्तान्त ( हिरण्यगुप्तराजकुमार के द्वारा सोते हुए पुरुष को खड्ग से शिर काट कर मारा ) को सुना । पश्चात् प्रकरण का ज्ञान हो जाने से उसने प्रत्येक चरण के एक-एक अक्षर से श्लोक बनाकर राजा को सुनाया । वह श्लोक निम्न प्रकार है : अनेन वनान्तरे तव पुत्रेण प्रसुप्तस्य शिखामाक्रम्य पादेन खड्गेनोपहतं शिरः ॥ 11 ॥
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अर्थ :- इसी आपके पुत्र ने अर्थात् नन्द राजा के पुत्र हिरण्यगुप्त ने वन में सोते हुए मनुष्य की चोटी खींचकर खड्ग से उसका शिर काट डाला 111 ॥ अभिप्राय इतना ही है कि स्थान की परीक्षा करके ही वहाँ गुप्त मन्त्रणा करना चाहिए | 130 ॥
अब गुप्त सलाह के अयोग्य व्यक्ति :
न तैः सह मन्त्रं कुर्यात् येषां पक्षीयेष्वपकुर्यात् ॥ 131 |
अन्वयार्थ :
(येषाम् ) जिनके ( पक्षीयेषु ) परिवारदि के व्यक्तियों का (अपकुर्यात्) अपकार किया हो (तै: उन लोगों के (सह) साथ में ( मन्त्रम्) गुप्त मन्त्रणा ( न कुर्यात् ) नहीं करे ।
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