Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
विशेषार्थ :- शोभन-अशोभनपना पुरुषों की कल्पना है न कि वस्तु का स्वभाव । क्योंकि संसार में कोई पदार्थ अच्छा-बुरा नहीं, अपितु जिसको जो जिस समय अपने अनुकूल पड़ती है उसे वह उस समय अच्छी हो जाती है । जैमिनि विद्वान ने भी कहा है :
सुन्दरासुन्दरं लोके न किंचिदपि विद्यते । निकृष्टमपि तच्छ्रेष्ठ मनसः प्रतिभाति यत् ॥1॥
अर्थ :- संसार में कोई भी वस्तु सुन्दर व असुन्दर नहीं हैं, अपितु जो मन को प्रिय लगती है वह सुन्दर और नहीं रुचे वह असुन्दर है । निकृष्ट होने पर भी मन की रुचि होने से सुन्टर प्रतीत है । अतः राग-द्वेष नहीं करना चाहिए 1136 ।। मक्षिकाओं को जिस प्रकार मल-मूत्रादि में प्रीति होती है उस प्रकार कपूर के चूर्ण में व केतकी की सुगन्ध में नहीं होती ।137॥ क्रोधी, विचारशून्य और गुप्त बात प्रकट करने वाले पुरुष से हानि :
अति क्रोधनस्य प्रभुत्वमग्नौ पतितं लवणमिव शतधा विशीर्यते 138॥ सर्वान् गुणान् निहन्त्यनुचितज्ञः ।। 139॥ परस्परं मर्म कथनयात्मविक्रमएव ।।1401
अन्वयार्थ :- (.. क्रोधनस्य) अत्यन्त क्रोधी का (प्रभुत्व) प्रताप (अग्नौ) आग में (पतितम्) पड़े (लवणम्) नमक (इव) समान (शतधा) सैंकड़ों प्रकार से (विशीर्यते) नष्ट हो जाता है । (अनुचितज्ञः) विवेकशन्य (सर्वान) सम्पूर्ण (गुणान्) गुणों को (निहन्ति) नष्ट कर देते हैं (परस्परम्) आपस में (मर्म) गुप्त (कथन) कथन करने से (आत्मविक्रम) आत्मशक्ति (एव) ही [अस्ति] है ।
विशेषार्थ :- अति क्रोधी का ऐश्वर्य अग्नि में होम किये लवण के समान सैकड़ों प्रकार से नष्ट हो जाता है । जैसाकि ऋषिपुत्रक ने भी कहा है :
अतिक्रोधी महीपालः प्रभुत्वस्य विनाशकः ।
लवणस्य यथा वन्हिमध्ये निपतितस्य च ॥1॥ अर्थ :- अग्नि में पड़ा नमक जिस प्रकार विनष्ट हो जाता है उसी प्रकार उग्रकोप करने वाले राजा या मनुष्य का ऐश्वर्य नष्ट हो जाता है In38॥ योग्यायोग्य विचार शून्य पुरुष समस्त ज्ञानादि गुणों को नष्ट कर देता है । नारद विद्वान कहते हैं :
गुणैः सर्वैः समेतोऽपिवेत्ति कालोचितं न च ।
वृथा तस्य गुणा सर्वे यथा षण्ढस्य योषितः ॥1॥ अर्थ :- जिस प्रकार नपुंसक पुरुष को गुणज्ञ-सुन्दर स्त्रियाँ व्यर्थ हैं, उसी प्रकार गुणों से विभूषित पुरुष यदि उन गुणों का समयानुकूल, विवेकपूर्वक प्रयोग नहीं करता है तो उसके गुण निरर्थक हैं In39
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