Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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- नीति वाक्यामृतम् विशेषार्थ :- समय बीतने पर नख से काले दोग्य-सरतामा कुमार को लोग्य-अति दुःसाध्य हो जाता है । सारांश यह है कि जो कार्य समय पर किया जाता है वह अल्प परिश्रम से ही बहु फल दायक होता है । समय चूकाने पर वही कार्य कठिन परिश्रम से भी साध्य नहीं होता है । शक्र विद्वान ने भी कहा है :
तत्क्षणान्नात्र यत् कुर्यात् किंचित् कार्यमुपस्थितम् ।
स्वल्पायासेन साध्यं चेत्तत् कृच्छ्रेण प्रसिद्धति ।।1।। अर्थ :- समक्ष उपस्थित हुए किसी कार्य को यदि उसी समय न किया जाय तो वह लघु काल में सिद्ध होने वाला भी दीर्घ काल में सिद्ध होता है । अर्थात् अल्प परिश्रम से होने वाला कार्य कठिनश्रम साध्य हो जाता है ।641 नीतिज्ञ मनुष्य का कर्तव्य :
को नाम सचेतनः सुखसाध्यंकार्यं कृच्छ्रसाध्यमसाध्यं वा कुर्यात् 165 ।। अन्वयार्थ :- (को नाम सचेतनः) कौन सचेतन प्राणी है जो (सुखसाध्यम् कार्यम्) सरलता से होने वाले कार्य को (कृच्छ्र) कष्ट (साध्यम्) से करने योग्य (वा) अथवा (असाध्यम्) असाध्य (कुर्यात्) करे ।
संसार में कौन बुद्धिमान होगा जो सरल काम को कठिन या असाध्य बना डालेगा ? कोई भी नहीं ।
विशेषार्थ :- विवेक मनुष्य को दैवी शक्ति के रूप में वरदान है । उसका सदुपयोग करे तो अवश्य ही दुसाध्य को साध्य बना सकता है । विद्वान गरु ने भी कहा है कि :
सुखसाध्यं च यत्कार्यं कृच्छ्र साध्यं न कारयेत्
असाध्यं वा मतिर्यस्य भवेच्चिते निरर्गला |1॥ अर्थ :- विद्वान विवेकीजनों को सुलभ कार्य को कठिन नहीं बनाना चाहिए 165 ॥ मंत्रियों के विषय में विचार और एक मंत्री से हानि :
एको मंत्री न कर्त्तव्यः ।166 ।। एको हि मंत्री निखग्रहश्चरति मुह्यति च कार्येष् कृच्छेषु ।।67 ।। अन्वयार्थ :- राजा को (एक:) एक (मंत्री) सचिव (न) नहीं (कर्तव्यः) करना चाहिए 165॥ क्योंकि (एका:) अकेला (मंत्री) सचिव (हि) निश्चय से (निखग्रहः) निरंकुश (चरति) भ्रमण करता है (च) और (कृच्छेषु) कठिन (कार्येषु) कार्यों में (मुह्यति) मुग्ध हो जाता है ।।
अकेला मंत्री निरंकुश हो स्वच्छन्द प्रवर्तन करता है । जिससे राजा का विरोध भी कब कर बैठेगा कोई जान भी नहीं सकता । एवं कठिन कार्यों के उपस्थित होने पर तो किं कर्तव्य विमूढ़ हो जाता है । कहा भी है "ज्ञातसारोऽपि खल्वेकः संदिग्धेः कार्यवस्तनि ।।"
विद्वान व्यक्ति भी अकेला रहने पर कठिन उपस्थित कार्य में किं कर्तव्य विमूढ हो जाता है । अतः राजा
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