Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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- नीति वाक्यामृतम्
घर में अग्नि लगने पर कोई उसे बुझाने को कूप खोदे तो क्या प्रयोजन सिद्ध होगा ? कुछ भी नहीं। __ विशेषार्थ :- जिस प्रकार आग लगने पर कूप खोदकर पानी निकालने का प्रयत्न व्यर्थ है, उसी प्रकार शत्रु आक्रमण करे उस समय सेना संगठित करने बैठे तो क्या प्रयोजन ? व्यर्थ ही होगा । नीतिकार चाणक्य ने भी कहा
विपदानां प्रतीकारं पूर्वमेव प्रचिन्तयेत् । न कू पखननं युक्तं प्रदीते सहसा गृहे ॥1॥
अर्थ :- नैतिक पुरुष को विपत्ति आने के पहले से ही उसका सामना करने की शक्ति संचित करके रखनी चाहिए। आपत्ति आने के पूर्व ही प्रतीकार का उपाय सोच लेना बुद्धिमता है । सहसा घर में अग्नि जलने पर कूप खोदना व्यर्थ है ।। अतः आपद्काल का सामना करने को पूर्व से ही सन्नद्ध रहना चाहिए ।।84 ।। धन व्यय की अपेक्षा जनसंग्रह उपयोगी है :
न धनं पुरुष संग्रहाद् बहु मन्तव्यम् ।।85॥ अन्वयार्थ :- (पुरुष संग्रहात्) मनुष्यों के संग्रह से (धनम्) धन को (बहू) अधिक (न) नहीं (मन्तव्यम्) मानना चाहिए ।
सहायक पुरुषों के संग्रह की अपेक्षा धन को महत्त्वपूर्ण नहीं समझना चाहिए । धनाभिलाषी और विजीगीषुओं को सहायक मंडल अवश्य तैयार करना चाहिए । शुक्र विद्वान भी लिखते हैं :
न वाह्यं पुरुषेन्द्राणां धनं भूपस्य जायते । तस्माद्धनार्थिना कार्यः सर्वदा वीरसंग्रहः ।।1॥
अर्थ :- राजा को सहायक श्रेष्ठों के बिना धन की उपलब्धि नहीं होती । इसलिए धनार्थियों को सदैव । वीर पुरुषों का संग्रह करना ही चाहिए । सहायकों को धन देने से लाभ :
सत्क्षेत्रे बीजमिव पुरुषेषून कार्य शतशः फलति ।186॥ पाठान्तर-सुक्षेत्रेषु बीजमिव कार्य पुरुषेषूतं धनं शतशः फलति ।।
अन्वयार्थ :- (सत्) उत्तम (क्षेत्रे) खेत में (बीजम्) बीज (इव) के समान (पुरुषेषु) सत्पुरुषों में (उप्तम्) वपित (कार्यम्) कार्य रूपी बीज (शतशः) सौगुना (फलति) फलित होता है ।
जिस प्रकार उपजाऊ भूमि गत बीज सैकड़ों गुणा फलता है उसी प्रकार योग्य सहायकों द्वारा किया गया । 1 कार्य भी सैकड़ों गुणा फल प्रदान करता है ।
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