Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
राज्ञः पुष्ट्या भवेत् पुष्टिः सचिवानां महत्तरा ।।
व्यसनं व्यसनेनापि तेनतस्य हिताश्च ये ।।1॥ अर्थ :- मंत्रीगण सदा राजा के हितैषी होते हैं । अतराव राजा की उन्नति से मंत्रियों की उन्नति होती इसी प्रकार राजा के ऊपर कष्ट होने पर मन्त्री पर भी आपत्ति आती है ।।
मन्त्रियों को सतत अपने स्वामी के हितानुकूल क्रिया करनी चाहिए ।।56 ।। कर्तव्यपरायण मंत्रियों के कार्यों में असफलता क्यों ?
स देवस्यापराथो न मंत्रिणां यत् सुधटितमपि कार्य न घटते ।।56 ॥ अन्वयार्थ :- (यत्) जो (मन्त्रिणाम्) मंत्रियों का (सुघटितम्) सम्यक् प्रकार किये जाने पर (अपि) भी (कार्यम्) कार्य (न) नहीं (घटते) होता है तो [अयम्] यह (दैवस्य) भाग्य का (अपराध:) दोष है (स:) वह (मंत्रिणाम्) मन्त्रियों का (न) नहीं ।
यदि मन्त्री सावधान होकर कार्य संलग्न हो और तो भी कार्य विफल हो जाता है तो उसमें राजा के पूर्वजन्म कृत पापोदय समझना चाहिए न कि मन्त्री का अपराध है ।
विशेषार्थ :- किसी भी कार्य की सिद्धि में दैव और पुरुषार्थ दोनों के निमित्त का होना अनिवार्य है । कभी दैव की प्रबलता होती है तो पुरुषार्थ विफल हो जाता है और पुरुषार्थ प्रबल होने पर दैव असफल हो जाता है । यदि पुरुषार्थ यथायोग्य होने पर भी कार्य सिद्ध न हो तो वहाँ राजा का दुर्भाग्य ही समझना चाहिए ।। भार्गव विद्वान ने भी इस प्रकार कहा है :
मंत्रिणां सावधानानां यत्कार्यं न प्रसिद्धयक्ति ।
तत् स दैवस्य दोषः स्यान्न तेषां सुहितैषिणाम् ।। अर्थ :- राजा के कार्य में सावधान और हितैषी मंत्रियों का जो कार्य सिद्ध नहीं होता, उसमें उनका कोई दोष नहीं, किन्तु दुर्भाग्य का ही दोष समझना चाहिए ।। कहा भी है "यत्ने कृति यदि न सिद्धति कोऽत्र दोषः "प्रयत्न करने पर भी कार्य सिद्ध न हो तो इसमें कर्ता का क्या अपराध ? कुछ भी नहीं 157 ।। राजा के कर्तव्य का निर्देश :
स खलु नो राजा यों मंत्रिणोऽतिक्रम्य वर्तेत ।।58॥ अन्वयार्थ :- (यः) जो (राजा) नृप (मंत्रिणः) मंत्री की राय को (अतिक्रम्य) उलंघन करके (वर्तेत) वर्तन करता है (खलु) निश्चय से (स:) वह (राजा) भूप (न) नहीं है ।।
जो राजा मंत्री की मन्त्रणा न सुनता है, न तदनुसार आचरण करता है वह पृथ्वी पति कहलाने का अधिकारी नहीं होता । उसका राज्य नष्ट हो जाता है ।।
विशेषार्थ :- राज्य की स्थिति मन्त्रियों के आश्रित रहती है । यदि मंत्री राय दे और राजा उसे न सुने तथा
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