Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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मीति वाक्यामृतम् -
N (अतिथि:) सत्पात्र (भूताः) समस्त प्राणियों की रक्षा (यज्ञाः) करना (हि) निश्चय से (नित्यम्) प्रतिदिन का (अनुष्ठानम्) कर्त्तव्य है ।
ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, अतिथियज्ञ, पितृयज्ञ और भूतयज्ञों का नित्य प्रतिपालन करना गृहस्थ का नैमित्तिक कर्तव्य है ।।20।
विशेषार्थ :- ऋद्धिधारी ऋषियों, गणधरों की पूजा करना ब्रह्मयज्ञ है । ऋषभादि चतुर्विंशति तीर्थंकरों की पूजा, भक्ति, स्तुति, जप, ध्यानादि करना देवयज्ञ है । माता-पिता की आज्ञापालन करना-सेवा सुश्रुषा करना आदि पितृ यज्ञ है । उत्तम, मध्यम, जघन्य सत्पात्रों को दान देना, उनकी भक्ति पूजादि करना । अतिथि यज्ञ है और प्राणी मात्र पर दया करना, समताभाव रखना भूतयज्ञ कहा जाता है । गृहस्थों को इन सत्कार्यों का नित्य अनुष्ठान करना चाहिए। नैमित्तिक अनुष्ठानों का वर्णन :
दर्शपौर्णमास्याद्याश्रयं नैमित्तिकम् 1121 ।। अन्वयार्थ :- (दर्श) शुभ (पौर्णमा) पूर्णिमा (अमावश्या) अमावश (आदि) इत्यादि (आश्रयम्) आश्रम से (कृतम) किये गये धर्मानुष्ठान (नैमित्तिकम्) नैमित्तिक अनुष्ठान (कथ्यते) कहे जाते हैं ।
___ अमावश्या, पूर्णिमा, दशहरा आदि शुभतिथियों में किये जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों को नैमिक्तिक अनुष्ठान कहते हैं।
विशेषार्थ :- जिन शुभतिथियों में धर्मतीर्थ के प्रवर्तक तीर्थंकरों के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और निर्वाण कल्याणक हुए हैं, या अन्य पूज्य पुरुषों-आचार्य, उपाध्याय, साधुपरमेष्ठियों के जन्म हुए हैं उन तिथियों में उन तीर्थंकरों, महापुरुषों की स्मृति रूप में उत्सवादि मनाये जाते हैं वे नैमित्तिक त्यौहार या अनुष्ठान कहे जाते हैं यथा रक्षाबन्धन, महावीर जयन्ती, श्रुत पञ्चमी वगैरह । श्रुतपंचमी को श्रुत पूर्णता तो हुयी ही, श्री 108 चारित्र-चक्रवर्ती मुनिकुञ्जर सम्राट प्रथमाचार्य आदिसागर जी अंकलीकर का आचार्य पदारोहण भी हुआ । अतः ये नैमित्तिक पर्व हैं । अनुष्ठान हैं । अब अन्य मतों की अपेक्षा गृहस्थों के भेद :
वैवाहिकः शालीनो मायावरोऽधोरो गृहस्थाः ।।22॥ अन्वयार्थ :- (वैवाहिक:) वैवाहिक (शालीन:) शालीन (जायावरः) जायावर (च) और (अघोरः) अघोर (गृहस्थाः ) ये चार प्रकार के गृहस्थ (भवन्ति) होते हैं ।
गृहस्थों के चार भेद हैं -
1. जो गृहस्थ गृह में रहकर श्रद्धापूर्वक केवल गार्हपत्य अग्नि में हवन करता है उसे "वैवाहिक" गृहस्थ समझना चाहिए।
2. जो पूजा के बिना केवल अग्निहोत्र करता है - पाँचों अग्नियों की पूजा करता है उसे शालीन जानना चाहिए ।
3. जो एक अग्नि अथवा पाँचों अग्नियों की पूजा में तत्पर रहता है और जो शूद्रों की धनादि चीजों को
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