Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
N राजा को षड्गुण प्रयोग किस प्रकार करना चाहिए :
____ मंत्रपूर्वः सर्वोऽप्यारंभः क्षितिपतीनाम् ।।22॥ अन्वयार्थ :- (क्षितिपतीनाम्) राजाओं को (सर्वे) सभी (अपि) भी (आरम्भः) कार्य (मंत्रपूर्व:) मन्त्रसचिवसलाहपूर्वक [कर्तव्याः] करने चाहिए ।
राजाओं का कर्तव्य है कि वे अपने सम्पूर्ण कार्यों-सन्धि, विग्रह, यान, आसन, संश्रय और द्वैधीभाव को सुयोग्य मन्त्रियों के साथ मन्त्रणा करके ही करें ।।22 ।।
विशेषार्थ :- मन्त्री राजाओं के नेत्र होते हैं । प्रजा में क्या हो रहा है, उसकी क्या-क्या आवश्यकताएं हैं, । उनकी पर्ति किस प्रकार हो. कौन राज्य राजा अनकल हैं. कौन प्रतिकल हैं इत्यादि का पता मंत्री लगाकर राज को सूचना देता है । अत: मन्त्री का राजनीतिज्ञ विद्या प्रवीण होना आवश्यक है । विद्वान शुक्र ने भी लिखा है -
अमंत्र सचिवैः सार्द्ध यः कार्यं कुरुते नृपः ।
तस्यतन्निष्फलं भावि षण्वस्य सुरतं यथा ॥ अर्थ :- जो नप मन्त्रि से विचार विमर्श किये बिना ही कार्य करता है उसका कार्य नपुसंक स्त्री के संभोग की भौति निष्फल हो जाता है । अत: राजा को प्रत्येक कार्य में सचिव सहाय लेना चाहिए ।।22॥ मंत्र-मन्त्री आदि की सलाह से लाभ :
अनुपलब्धस्यज्ञानं, उपलब्धस्य निश्चयः, निश्चितस्य बलाधानं, अर्थस्य द्वैधस्य संशयच्छेदनं, एकदेश लब्धस्या शेषोपलब्धिरिति मंत्रसाध्यमेतत् ।।23॥
अन्वयार्थ :-(अनुपलब्धस्य) जो अप्राप्त है उसकी (ज्ञानम्) जानकारी (उपलब्धस्य) प्राप्त वस्तु का (निश्चयः) निश्चिति (निश्चितस्य) निश्चित का (बलाधानम्) सुदृढ करना (अर्थस्य) किसी अर्थ के (द्वैधस्य) संशय होने की (संशयच्छेदनम्) शंका दूर करना (एकदेशलब्धस्य) देश रूप - अंशरूप प्राप्ति का (अशेषोपलब्धिः ) पूर्ण प्राप्ति (इति) इस प्रकार (एतत्) यह सब कार्य (मन्त्रसाध्यम्) मन्त्रणा से साध्य [भवन्ति] होते हैं ।।23 ॥
विशेष कार्यों की सिद्धि विशेष मंत्रणादि से ही संभव होती है ।
विशेषार्थ :- सन्धि विग्रह आदि में जो प्राप्त-या ज्ञात विषय नहीं है वह शत्रु सैन्य वगैरह के विषय में जानकारी करना । ज्ञात कार्य के विषय में निश्चय करना, ज्ञात होने पर भी वह यथार्थ है या नहीं इस प्रकार निश्चय करना __ अथवा प्राप्त विषय को स्थिर करना । निश्चित कार्य को दृढ करना या सन्देहास्पद कार्य को नि:स्सन्देह करना निदर्शनार्थ शत्रु राजा के राज्य से आया हुआ गुप्तचर, शत्रु सेना, खजाना आदि के विषय में जानकारी लाया, उसके कुछ समय बाद दूसरा गुप्तचर आया और उसने राजा को उलटा-सीधा समझा दिया उसने भी स्वीकारता दे दी । इस परिस्थिति में मंत्रि का कर्तव्य होता है कि वह एक सुयोग्य कर्मठ गुप्तचर चुनकर भेजे और यथार्थ स्वरूप का पता लगाये । इस प्रकार सम्यक् प्रकार से विश्वासपात्र गुप्तचर से निर्णीत कर लिया जाय कि वस्तु स्थिति क्या है
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