Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम् ।। मन्त्रियों के साथ किये हुए विचार - के अङ्गः ।। कर्मणामारम्भोपायः पुरुषद्रव्यसम्पद् देशकालविभागो विनिपातप्रतीकारः कार्य सिद्धिश्चेति पंचाऽगो मन्त्रः ।।25।
अन्वयार्थ :- (कर्मणाम्) कार्यों के (आरम्भस्य) प्रारम्भ करने का (उपायः) चेष्टा (पुरुषद्रव्य सम्पद्) पुरुष और द्रव्यसम्पदा (देशकालविभागः) देश व काल विभाग (विनिपातः) आपत्ति (प्रतिकारः) दूर करना (च) और (कार्यसिद्धिः) कार्य सिद्धि (इति) ये (पञ्च) पाँच (मन्त्रः) मंत्र के (अगा:) अंग [सन्ति] हैं ।।
1. कार्यारम्भ करने का उपाय 2. पुरुष और द्रव्य सम्पत्ति 3. देश और काल का विभाग 4. विनिपात प्रतीकार और 5. कार्यसिद्धि ।
विशेषार्थ :- 1. कार्य प्रारम्भ करने का उपाय :- अपने राष्ट्र को शत्रुओं से सुरक्षित रखने के लिए उसमें खाई, परकोटा, किला-दुर्गादि का निर्माण कराने का प्रयत्न करना, उसके साधनों का विचार करना, दूसरे शत्रु राजाओं का भेद पाने को गुप्तचर नियुक्त करना, खुफियों को भेजना, आदि मन्त्र का प्रथम अङ्ग है ।। किसी नीतिकार ने कहा है:
कार्यारम्भेषु नोपायं तत्सिद्धयर्थं च चिन्तयेत् ।
यः पूर्वं तस्य नो सिद्धि तत्कार्यं याति कर्हिचित् ।।।। अर्थ :- जो पुरुष कार्य प्रारम्भ करने के पूर्व ही उसकी पूर्णता का उपाय साम व दान आदि नहीं सोचता, उसका वह कार्य कभी भी पूर्ण नहीं होता । 2. पुरुष व द्रव्य सम्पत्ति :- अर्थात् यह पुरुष अमुक कार्य करने की क्षमता रखता है यह निर्धारित कर उसे उसी कार्य में नियुक्त करना, अमुक द्रव्य से अमुक कार्य संभव है, उसमें उतना द्रव्य लगाना अथवा किस' क्ति के पास कितनी सम्पत्ति है आदि का ज्ञान करना "द्रव्यसम्पत्" नामक दूसरा मत्राङ्ग है । उदाहरणार्थ - अपने देश में दुर्ग निर्माता, बढ़ई, लुहार, सुनार कौन चतुर है, परदेश में पुरुष सन्धि आदि करने में कुशल दूत, सेना पति, द्रव्य -रत्न सुवर्णादि क्या योग्य है इत्यादि का ज्ञान करना । किसी नीतिकार ने कहा है :
समर्थ पुरुष कृत्ये तदहं च तथा धनम् ।
योजयेत् यो न कृत्येषु तत्सिद्धिं तस्यनो प्रजेत् ।।1।। अर्थ :- यदि किसी कार्य के लिए उस कार्य में कुशल व योग्य पुरुष को नियुक्त नहीं किया जायेगा और उसके अनुकूल द्रव्य नहीं लगाया जायेगा तो उस कार्य की सिद्धि नहीं हो सकेगी । अतः योग्य पुरुष और द्रव्य का परिज्ञान करना "पुरुष-द्रव्यसम्पत्" है ।।
3. देश और काल विभाग :- अमुक कार्य के लिए अमुक देश, व अमुक समय योग्य होगा, अमुक प्रतिकूल देश-काल है । इस प्रकार विचार करना तीसरा मंत्र का अङ्ग है । दुर्ग, खाई, उद्यानादि कब कहाँ बनाना, सुभिक्ष, दुर्भिक्ष, वर्षा आदि काल आने पर किस प्रकार व्यवहार करना, किस काल में किस देश के साथ संधि करना, किससे
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