Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
पराजय कराने वाली होती है । उसी प्रकार जो विद्वान परवादियों के समक्ष ताल ठोक कर उत्तर-प्रयुत्तर नहीं कर सकता - परवादियों को रोक नहीं सकता उसका शास्त्रज्ञान उसकी हार पराजय के लिए ही होता है ।।
विशेषार्थ :- वीर पुरुष को अपने शस्त्र ज्ञान का उपयोग शत्रुसेना के निग्रह करने में और शास्त्रज्ञ विद्वान को अपने ज्ञान का प्रयोग पर वादियों को परास्त करने में करना चाहिए । वही शास्त्रज्ञान है जिसके आधार पर स्वसिद्धान्त स्वपक्ष का समर्थन और पर पक्ष का खण्डन में सामर्थ्य प्रदर्शित कर सके । अन्य अवश्यम्भावी है ।। नारद विद्वान ने भी लिखा है :
शत्रोवा वादिनो वाऽपि शास्त्रेणैवायुधेन वा ।
विद्यमानं न हन्याद्यो वेगं स लघुतां व्रजेत् ॥1॥ अर्थ :- जो योद्धा शत्रु के बढ़ते हुए आक्रमण को अपनी शस्त्रकला की शक्ति से नष्ट नहीं करता, वह लघुता को प्राप्त होता है । इसी प्रकार जो विद्वान वादियों के वेग को अपनी विद्वत्ता की शक्ति से नहीं रोकता, वह भी लघुता को प्राप्त होता है । पाठान्तर :
"दशं शास्त्रं वा, आत्मपरिभवाभावाय यन्न हन्ति परेषां प्रसरं"
जिसकी शस्त्र और शास्त्रकला क्रमशः शत्रुओं व वादियों के प्रसार (हमला और खण्डन) को नष्ट नहीं कर सकती, उसकी वह शस्त्र-शास्त्र कला अनुपयोगी होने से उसके पराजय को नहीं रोक सकती - उससे उसे विजय लक्ष्मी प्राप्त नहीं हो सकती ।।20।। कायर व मूर्ख पुरुष मन्त्रीपद के अयोग्य है :
न हि गली वलीवर्दो भारकर्मणि केनापि युज्यते ।।21 ।।
अन्वयार्थ :- (गलीवलीवर्दः) बछड़े (भारकर्माणि) बोझा ढोने के कार्य में (केनाऽपि) किसी भी द्वारा (हि) निश्चय से (न युज्यते) लगाया जाता है ।
कोई भी विद्वान गाय के बछडे को भारवाही नहीं बनाता । अर्थात् बोझा ढोने में नहीं लगाता है ।
विशेषार्थ :- जिस प्रकार अनुपयुक्त गाय के बछडे को भार ढोने में लगाना व्यर्थ होता है, उसी प्रकार कायर पुरुष को संग्राम करने से, मूर्ख को शास्त्रार्थ करने से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता है । इसलिए प्रकरण में सचिव को बुद्धि विद्याप्रवीण होने के साथ-साथ शूर-वीर भी होना चाहिए । कायर व मूर्ख व्यक्ति मन्त्रीपद के योग्य नहीं हो सकता है।
अपरिपक्व अवयवी होने से बछडा भार ढोने में सफल नहीं होता, उसी प्रकार अकुशल व्यक्ति राज-काज का भार वहन करने में समर्थ नहीं हो सकता ।21 ।।
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