Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
अन्वयार्थ :- (य:) जो (युक्तः) योग्य (अयुक्तः) अयोग्य के विषय में (अविकेकी) भेद नहीं समझता M (वा) अथवा (विपर्यस्ता) विपरीत (मतिः) बुद्धि है (स:) वह (दुर्विनीतः) दुष्ट (अस्ति) है ।
जो राजा योग्य व अयोग्य पदार्थों में भेद नहीं करता अर्थात् योग्य को अयोग्य और अनुचित को उचित समझता है । अयोग्य पुरुषों को दान सन्मानादि से संतुष्ट करता है और योग्यों को अपमान कर तिरस्कृत करता है वह विपरीत बुद्धि दुष्ट राजा कहलाता है । राग्यपद के योग्य पुरुषद्रव्य का लक्षण कहते हैं :
यत्रं सद्भिराधीयमाना गुणा संक्रामन्ति तद् द्रव्यम् ।।42॥ अन्वयार्थ :- (यत्र) जहां (सद्भिः) विद्वानों द्वारा (आधीयमानाः) अरोपित गुणों से समन्वित किये गये हों (गुणाः) राजकीयगुण (संक्रामन्ति) संक्रामित होकर स्थिर हो गये हों (तद्) वह (द्रव्यम्) योग्य द्रष्य है ।
जिस पुरुष में महाविद्वानों-राजनीतिज्ञ, शास्त्रज्ञों द्वारा राज्यशासन की शिक्षा, गुण, विद्या आरोपित की हैं अर्थात अस्त्र-शस्त्रादि राजविद्या आरोपित की गई हो वही पुरुष राजा होने योग्य "पुरुषद्रव्य" कहा जाता है । प्रजापालन, राज्यशासन का प्रधान-मुख्य कर्त्तव्य है ।
विशेषार्थ :- जिस प्रकार योग्य पाषाण में कुशल शिल्पी अपनी तीक्ष्ण दृष्टि और पैनी छैनी से मनोज्ञमूर्ति उकेर देता है और पुन:-विशेषज्ञ प्रतिष्ठाचार्य, आचार्य परमेष्ठी उसमें मन्त्र संस्कार देते हैं सूर्य मंत्र प्रदान करते हैं
और वह पाषाण बिम्ब साक्षात् भगवान बन जाता है । इसी प्रकार जो पुरुष राजनीति विद्या से संस्कारित होता है वही राजा बनने की योग्यता प्राप्त कर लेता है । श्री भागुरि विद्वान ने भी लिखा है :
योज्यमाना उपाध्यायैर्यत्रसि स्थिराश्च ते ।
भवन्ति नरि द्रव्यं तत् प्रोच्यते पार्थिवोचितम् ।।1।। अर्थ :- वही पुरुषद्रव्य नृपति होने के योग्य है, जिसमें राजनीतिज्ञ श्रेष्ठ पुरुषों के द्वारा सद्गुण-नीति, सदाचार, शूरत्व, वीरत्व, निर्भयत्व, स्वाधीनत्वादि गुण स्थिर किये गये हों । राज्योचित गुण जिसने जीवन में साकार किये हैं वही भूपति आदर्श शासक बनने योग्य होता है ।।
लवकुश ने क्षुल्लकमहाराज पास धर्म, नीति के साथ शस्त्रादि विद्याओं को प्राप्त किया था । जीवन में उतारा । फलतः पदवीधारी भी पिता और चाचा से पराजित नहीं हुए । "सिंह के बच्चे सिंह होते हैं" युक्ति प्रत्यक्ष कर दिखायी । तात्पर्य यह है कि विद्या-संस्कार अन्तरंग में छिपी शक्तियों को उभार देती हैं । अग्नि संस्कार युक्त मिट्टी का घड़ा जलधारण की योग्यता प्राप्त कर लेता है । कच्चे घड़े में यदि जल भर दिया जाय तो घडे के साथ नीर बिखर जाता है । नष्ट हो जायेगा । इसी प्रकार अयोग्य राजा राज्य के साथ नष्ट हो जाता है और नीति निपुण भ्रष्ट-नष्ट राज्य को आबाद कर देगा । राज्य योग्य गुण सम्पन्न योग्य पुरुष शासक बनना चाहिए ।
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