Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
अन्वयार्थ :- ( तेन) उस (अस्त्रज्ञेन) शस्त्र विद्या ज्ञाता (मंत्रिणा ) मन्त्री द्वारा (सहायेन ) सहायता से (किम् ) क्या प्रयोजन (यस्य) जिसका (आत्मरक्षणे) स्वात्मरक्षा को (अपि) भी (अस्त्रम्) शस्त्र ( न प्रभवति ) प्रभावित नहीं होता प्रकट नहीं होता ।
शस्त्रविद्या में निपुण होकर भी युद्ध क्षेत्र में पराक्रम नहीं दिखाता उस व्यक्ति को सहायतार्थ मन्त्री पदासीन करने से क्या लाभ है ? कुछ नहीं ।
विशेषार्थ :- जो व्यक्ति युद्ध कला में प्रवीण वीर रस पारंगत है, बहादुर है वही राजमन्त्री बनने योग्य है। परन्तु जो केवल शस्त्र विद्या पारंगत तो हो, और रणभूमि में कायरता दिखाये, स्वयं अपनी भी रक्षा नहीं कर सकता वह डरपोक राजमन्त्री होने का अधिकारी नहीं है ||13|
उपधा- शत्रु चेष्टा की परीक्षा निर्देश :
धर्मार्थकामभयेषु व्याजेन परचित्तपरीक्षणमुपधा ।।14।
अन्वयार्थ :( धर्म-अर्थ-काम-भयेषु) किसी के धर्म, अर्थ, काम भय के विषय में (व्याजेन) गुप्त रूप से ( परचित्त) दूसरे के चित्त की ( परीक्षम् ) परीक्षा जांच करना ( उपधा) उपधा (अस्ति ) है ।
विशेषार्थं शत्रु के धर्मादि के विषय में कि अमुक शत्रुभूत राजा धार्मिक है या अधर्मी है ? उसका कोष प्रचुर पूरित है या नहीं ? वह कामान्ध है या जितेन्द्रिय ? कायर है या बहादुर ? डरपोक है या वीर ? प्रजावत्सल है या भोगी? इत्यादि ज्ञान प्राप्त करने के लिए गुप्तचरों द्वारा छल से शत्रुचेष्टाओं को अवगत करना "उपधा" कहलाती है । यह उपधा" या 'उपाधि' राजमन्त्री का प्रधानगुण है । उपधा के भेद :- 1. धर्मोपधा 2. अर्थोपधा 3 कामोपधा, 4. भयोपधा ।
1. धर्मोपधा :- राजनीतिनिपुण मंत्रि का कर्तव्य है कि धर्म विद्या में निपुण गुप्तचर को नियुक्त कर शत्रु राजा के विषय में जानकारी करे कि वह धर्मात्मा है या व्यभिचारी । इसके लिए उसके राजपुरोहित से गुप्तचर मित्रता करे । उससे ज्ञात करे कि वह पापाचारी है या सदाचारी । यदि शिष्टाचारी - धर्मात्मा सिद्ध हो तो शीघ्र उससे सन्धि कर लेनी चाहिये अर्थात् अपने राजा के साथ सन्धि करा दे । यदि वह अत्याचारी या पापाचारी है तो विग्रह- युद्ध करके अपने राज्य की श्री वृद्धि कर लेनी चाहिए । यह मन्त्री की "धर्मोपधा" है।
2. अर्थोपधा: :- अर्थ शास्त्र में निपुण गुप्तचर को विक्रय की वस्तुएँ लेकर शत्रु के राज्य में भेजे। वह वहां जाकर उसके कोषाध्यक्ष से मैत्री करे । कोष की स्थिति का ज्ञान करे । वापिस आकर मंत्री को विदित करावे । यदि उसका खजाना सम्पन्न भरपूर है तो अपने राजा के साथ सन्धि करा दे और खाली खजाना है तो विग्रहयुद्ध कर राज्य की श्री वृद्धि करे ।
3. कामोपधाः :- कामशास्त्र में निपुण गुप्तचर को भेजकर शत्रु राजा की कंचुकी के साथ मेल करावे और राजा के काम भाव का पता लगावे । यदि वह कामासक्त है, पर स्त्री लम्पटी है, द्यूतादि व्यसनी है तो उससे युद्ध करा परास्त करावे और यदि जितेन्द्रिय है तो सन्धि करना उचित है ।
4. भयोपधाः :- मन्त्री का कर्तव्य है कि शूरवीर और युद्धकला में प्रवीण गुप्तचर भेजकर उसकी सेनापति
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