Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
(मूल्याविनाशेन ) जितना मूल्य हो उतना देकर ( राज्ञः ) राजा का कर्त्तव्य है ( तद्) उसके शेष को (भाण्डम् ) वस्तु को [गृह्णीयात् ] स्वयं ग्रहण करे ||
विशेषार्थ :- यदि कोई व्यापारी किसी बहुमूल्य सुवर्ण व हौरादि वस्तु को वंचना कर धोखा दे अल्प मूल्य में खरीद ले, तो राजा का कर्त्तव्य है कि उसका यथोचित मूल्य से अधिक मूल्यवाली वस्तु को 'जब्त' कर ले । परन्तु विक्रय करने वाले को जितना उसे खरीददार ने दिया था, उतना उसे दे देना चाहिए । नारद विद्वान ने भी लिखा है :
"जब चोर या मूर्ख मनुष्यों ने किसी व्यापारी को बहुमूल्य सुवर्णादि वस्तु अल्पमूल्य में बेच दी हो तो राजा को उसका पता लगाकर खरीदने वाले की वह बहुमूल्य वस्तु जब्त कर लेनी चाहिए और बेचने वाले को अल्पमूल्य दे देना चाहिए ॥ 11 ॥ देखिये नीति सं.टी. पृ. 99. 1119 ॥
अन्याय की उपेक्षा करने से हानि :
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अन्यायोपेक्षा सर्वं विनाशयति ॥20 ॥
अन्वयार्थ ( अन्यायस्य) अनीति की (उपेक्षा) टालमटोल (सर्वम्) सर्व का ( विनाशयति ) नाश करती
यदि अन्याय को उत्पन्न होते ही नहीं रोका तो वह देश, राष्ट्र, राजा प्रजा सब ही का सफाया कर देगा। अतः अन्यायी चोरादि को तत्क्षण दण्डादि की व्यवस्था करना राजा का कर्त्तव्य है ।
विशेषार्थ :- जिसके राज्य में चोरी, अन्यायी, व्यभिचार, अनाचारादि प्रचलित हों और राजा उधर ध्यान न दे । अर्थात् अत्याचार अनाचार करने वालों को उचित दण्ड विधान कर रोक न लगाये तो वह राजा राज्य राष्ट्र सहित विनाश को प्राप्त होता है । शुक्र ने लिखा है ::
अन्यायान् भूमिपो यत्र न निषेधयति क्षमी । तस्यराज्यं क्षयं याति यद्यपि स्यात् क्रमागतम् ॥1॥
अर्थ :- जहाँ भूपति क्षमा धारण कर अन्यायी जनों को उचित दण्ड निग्रह - विधान नहीं करता उसका वंश परम्परा - कुलक्रम से चला आया सुदृढ़ राज्य भी नष्ट हो जाता है । सर्वत्र यथायोग्य व्यवस्था ही सुयोग्य कार्य सिद्धि की नियामक होती है ॥20 ॥
राष्ट्र के शत्रुओं का निर्देश करते हैं
चौर-चरट - मन्नप - धमन-राजवल्लभाटविकतलाराक्षशालिकनियोगिग्रामकूटवार्द्धषिकाहि राष्ट्रस्य कण्टकाः ॥ 21 ॥
अन्वयार्थ :- (चौर: ) तस्कर (चरट) देश निष्काशित (मन्नपः) क्षेत्रादि का माप करने वाले (धमन:) चारणादि (राजवल्लभः) राजा के प्रेम पात्र (आटविक: ) जंगल के रक्षक (तलारः) कोटपाल (अक्षशालिक :) जुआरी
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