Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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| नीति वाक्यामृतम्
"विधान नहीं होने से देश में मात्स्य न्याय-प्रचलित हो जाता है । अतः दण्डनीति का प्रयोग अवश्यम्भावी है ।"
राज्य, राष्ट्र व प्रजा को समृद्ध बनाने हेतू दण्डनीति अनिवार्य है ।।। दण्ड नीति का स्वरूप निर्देश :
यथा दोषं दण्डप्रणयनं दण्डनीतिः ।।2॥ अन्वयार्थ :- (यथा) जैसा (दोषम्) दोष तथा (दण्डप्रणयनम्) दण्डविधान करना (दण्डनीतिः) दण्डनीति [अस्ति ] है ।
जिस प्रकार का, जिसमका का अपाय हो उसे उसी प्रकार का दण्ड देना चाहिए । साथ ही अपराधी के स्वभाव व अपराध के कारण को समझ कर दण्ड देना आवश्यक है। विशेषार्थ :- दण्डनीति राजकण्टको शमन की औषधि है । गुरु विद्वान ने इस विषय में लिखा है :
स्मृत्युक्त वचनैर्दण्डं हीनाधिक्यं प्रपातयन् । अपराधक पापेन लिप्यते न विशुद्धयति ।।।
अर्थ :- राजा का कर्तव्य है कि स्मृति शास्त्र विहित युक्तियों द्वारा अपराधियों को अपराधानुकूल दण्ड देना चाहिए। जैसा जितना हीनाधिक अपराध हो उसी प्रकार कम अधिक दण्ड व्यवस्था भी होनी चाहिए । जो नृप इसके विपरीत अपराध की ओर दृष्टि न देकर न्यूनाधिक दण्ड देता है तो पापलिप्त होता है, अर्थात् अपराधियों का पाप भार राजा को दोना पड़ता है वह शुद्ध नहीं होता और अपराधों का अभाव भी नहीं होगा 11 ॥ चाणक्य ने इसका विशद वर्णन किया है :
दण्डो हि केवलो लोके परं चेमं च रक्षति । राज्ञापुत्रे च शत्रौ च यथादोषं समं धृतः ॥ अनुशासद्धि धर्मेण व्यवहारेण संस्थया । न्यायेन च चतुर्थेन चतुरन्तां महीं जयेत् ।।2।। दष्ट दोषः स्वयंवादः स्वपक्षपर पक्षयोः । अनुयोगार्जवं हेतुः शपथश्चार्थ साधकः ।।3।। पूर्वोत्तरार्थव्याघाते साक्षिवक्तव्य कारणे । वारहस्ताच्ानिष्पाते प्रदेष्टव्यः पराजयः ।।4।।
कौ. अ. शा. धर्म
स्थानीयत अ.अ.1 विशदविचार :- भूपति का कर्तव्य है कि वह पुत्र व शत्रु के अपराध में पक्षपात नहीं कर समान रूप से दण्ड प्रदान करे । क्योंकि अपराधानुसार न्यायोचित दण्ड ही इस लोक और परलोक का रक्षण करता है । स्व Nपुत्र के अपराध में न्यून और शत्रु के उसी प्रकार के गलत कार्य पर अधिक दण्ड राजा द्वारा दिया जायेगा तो इस
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