Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम्
लोभ के वशी छिद्रान्वेषी वैद्य और राजा की कड़ी आलोचना :
स किं राजा वैद्यो वा यः स्वजीवनाय प्रजासु दोषमन्वेषयति ।। अन्वयार्थ :- (यः) जो (स्व) निज (जीवनाय) जीवन यापन के लिए (प्रजासु) प्रजा में (दोषम्) अपराधों को (अन्वेषयति) खोजता है (स:) वह (किम्) क्या (राजा) नृपति (वा) अथवा (वैद्यः) वैद्य [अस्ति] है ? अर्थात् नहीं ।
जो वैद्य एवं भूप अपने ऐशो आराम के लिए जनता के दोष देखते हैं और धन लूटते हैं क्या वह राजा है ? वैद्य है ? नहीं ।
विशेषार्थ :- अपने निर्वाह के लिए जो प्रजा के दोषों को देखता, अल्प अपराध होने पर भी अधिक दण्ड देता है - भारी जुर्माना लगाता है वह राज
है. भारी जर्माना लगाता है वह राजा नहीं अपितु शत्र है । इसी प्रकार जो वैद्य प्रजा में रोगों को ही खोजता है रोगियों की संख्या बढ़ाने का काम करता है, रोग की वृद्धि करने वाली औषधि देता है मात्र फीस लेने का ही अभिप्राय रखता है वह वैद्य नहीं अपितु कसाई है - शत्रु है । ॥ शुक्र ने भी कहा है :
यो राजा परवाक्येन प्रजा दण्डं प्रयच्छति । तस्य राज्यं क्षयं याति तस्माज्ञात्वा प्रदण्डयेत् ।11।
अर्थ :- जो महीपाल दूसरों के कथन से प्रजा को दण्डित करता है उसका राज्य नष्ट हो जाता है । इसलिए स्वयं अपराध-दोष ज्ञात कर, सोच-विचार कर दण्ड देना चाहिए ॥ ॥ और भी :
छिद्रान्वेषण चित्तेन नृपस्तंत्रं न पोषयेत् । तस्य तन्नाशमभ्येति तस्मात्त्वङ्गजनारिता ।।2।।
अर्थ :- राजा सैनिक संगठन इस उद्देश्य से न करे कि प्रजा के दोषों का अन्वेषण करना है, कारण कि इस अभिप्राय प्रजा उससे असतुष्ट हो जायेगी । शत्रुता करेगी । फलस्वरूप समस्त राज्य ही नष्ट भ्रष्ट हो जायेगा।
सारांश यह है कि राजा को दण्डनीति का प्रयोग अत्यन्त सावधानी से करना चाहिए । राजा द्वारा अग्राह्य धन :दण्ड-चूत-मृत्-विस्मृत-चौर-पारदारिक-प्रजाविप्लवजानि द्रव्याणि न राजा स्वयमुपयुञ्जीत ।।5।
अन्वयार्थ :- (दण्ड) जुर्माने से (द्यूत) जुआ (मृत्) युद्ध में मरे लोग (विस्मृत) मनुष्यों द्वारा भूला (चौर) चोरी से लाया गया (पारदारिक) परस्त्री सेवन से प्राप्त (प्रजाविप्लवजानि) गदरादि से उपलब्ध (द्रव्याणि) धन द्रव्य, आभूषणादि को (राजा) नृपति (स्वयम्) स्वयम् (न उपयुञ्जीत) भोग न करे-उपयोग में न लावे ।।
विशेषार्थ :- अपराधियों के जुर्माने से आये हुए, जुआ में जीते हुए, युद्ध में मारे गये, नदी, सरोवर-कूपादि व मार्ग में मनुष्यों द्वारा विस्मृत हुए धन का और चोरी के धन का तथा पति पुत्रादि परिवार विहीन अनाथ स्त्री
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