Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीतिवाक्यामृतम्
किस समय किस देश में कौन वस्तु भेजना व किसको मांगना चाहिए "यह कालापेक्षा" समझना चाहिए।
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कहाँ किस किस वस्तु का उत्पादन कितनी मात्रा में हुआ है इसका विचार करना राजा का कर्त्तव्य है । इस प्रकार जानकारी होने से वस्तुओं का भाव- मूल्य निर्धारण करने में सुविधा होती है । परिणामतः व्यापारी भी मनमानी नहीं कर सकेंगे । घूसखोरी का उद्भव ही नहीं होगा । प्रजा में धन का प्राचूर्य बना रहेगा । कोई भी दारिद्रय पिशाच से ग्रस्त नहीं होगा। सभी अमन-चैन की वंशी बजायेंगे सुखी होंगे 1115 | व्यापारियों के छल-कपट में राजा का कर्त्तव्य :
पण्यतुलामान वृद्धौ राजा स्वयं जागृयात् 1116 ॥
अन्वयार्थ :(पण्यतुलामानवृद्धौ) व्यापारियों की तुला व मान के विषय में (स्वयम्) अपने आप (राजा) नृप (जागृयात्) जाग्रत रहें | 16 ॥
राजा को प्रजा की सुरक्षा व अमन-चैन, सुख-सुविधा को दृष्टि में रखना चाहिए । इसके लिए वह स्वयं जाग्रत रहे । वह स्वयं इनक्वारी करे कि व्यापारी वर्ग बाट तराजू एवं मान-प्रस्थादि बराबर रखते हैं या नहीं । सेरपसेरी, गुञ्जादि तुला के साधन और प्रस्थादि मान के साधन यथायोग्य हैं या नहीं ।
विशेषार्थ :- बहुमूल्य वस्तुओं में अल्पमूल्य की वस्तुओं का मिश्रण करना, नवीन पदार्थों में पुराने मिलाना, तुला मान में कमीवेशी रखना या व्यापारियों की चाल- बाजी चलती है । शोषण और पोषण में रात्रि दिवस, अन्धकारप्रकाश समान अन्तर हैं। राजा का उद्देश्य प्रजा का पोषण करना होता है। शुक्र विद्वान ने लिखा है :
भाण्ड संगासुलामानाद्धीनाधिक्याद्वणिक जनाः I वंचयन्ति जनं मुग्धं तद्विशेषं महीभुजः ||1||
अर्थ :- वणिक् जन बहुमूल्य वाली वस्तुओं में अल्पमूल्य वस्तु का मिश्रण करना, दो प्रकार की तुला, दो प्रकार का मान रखकर बेचारे मुग्ध भोले भाले लोगों को ठगते हैं। इन विषयों में राजा को हस्तक्षेप करना चाहिए अर्थात् छल, कपट, लूट-पाट एवं बलात् परधनहरण आदि कुकृत्यों पर रोक लगाना और न्याय नीति का प्रचार प्रसार रखना नृपति का कर्तव्य है 1116 ॥
राजा को वणिक् लोगों से असावधान रहने से हानि :--
न वणिग्भ्यः सन्ति परे पश्यतोहरः । 117 ॥
अन्वयार्थ :- ( वाणिग्भ्यः ) व्यापारियों से ( परे) बढ़कर (पश्यतोहर :) चोर (न) नहीं (सन्ति) हैं।
वणिक् लोगों को छोड़कर अन्य कोई प्रत्यक्ष चोर नहीं है ।
विशेषार्थ :- तस्कर तो रात्रि में प्रच्छन्न रूप से माल असवाव लेकर जाते हैं । अर्थात् परोक्ष में चोरी करते हैं । परन्तु वणिक् जन दिन में प्रत्यक्ष देखते हुए कम तौल कर, कमती कपड़ा आदि माप कर, गज छोटा रखकर तराजू के पलड़े आदि ऊपर-नीचे कर चोरी करते हैं । अतः आचार्य श्री ने इन्हें "प्रत्यक्षचोर" कहा है। सामने
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