Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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नीति वाक्यामृतम् ।
वार्ता - सम्मुद्देशः
वार्ता विद्या का स्वरूप व वैश्यों की जीविका :
कृषिः पशुपालनं वाणिज्या च वार्ता वैश्यानाम् ।।1॥ अन्वयार्थ : (कृषिः) खेती (पशुपालनम्) पशुओं का संरक्षण (च) और (वाणिज्या) व्यापार (वैश्यानाम्) वैश्यों का धन्धा [अस्ति] है ।।
वैश्यों की आजीविका के साधन खेती करना, पशु पालना और व्यापार करना है ।
विशेषार्थ :- वैश्य उत्तम कुल है । यह पिण्ड शुद्धि रखता है । आचार्य जिनसेनस्वामी ने इनके जीवन निर्वाह के विषय में कहा है :
असिमषिः कृषिविधा वाणिज्यं शिल्यमेव वा । कर्माणीमानि षोढा स्युः प्रजा जीधन हेतवे ।।1॥
आ.पु.
अर्थ :- इतिहास के आदिकाल में भगवान ऋषभदेव ने प्रजा की जीवन रक्षा के लिए 1. असि 2. मषि, 3. कृषि, 4, विद्या, 5. वाणिज्य और 6. शिल्प ये छः कर्म निर्धारित किये थे ।
असि - युद्धकला - अस्त्र-शस्त्र प्रयोग कला । मषि - लेखन क्रिया ।
कृषि - खेती-अनाज उपजाने की कला । विद्या - वचन प्रयोग - व्याकरण, गणित, साहित्यादि का अभ्यास करना।
वाणिज्य - व्यापार - हीरा, मोती, जवाहिरात, किराना आदि का व्यापार ।
शिल्पकला - चित्रकला, नक्काशी आदि की कलाओं द्वारा जीविका चलाना । जीविकोपार्जन के साधनों से राजा का लाभ क्या :
वार्ता समृद्धौ सर्वाः समृद्धयो राज्ञः ।।2।।
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