Book Title: Niti Vakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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| नीति वाक्यामृतम्
विशेषार्थ :- क्षत्रिय विशेष स्वाभिमानी होते हैं । जिस पर उनका क्रोध उमड़ा कि प्राण लेकर ही शान्त होता है।
सारांश यही है कि क्षत्रियों का रक्त उदधि के ज्वार-भाटों समान उछलता है । अपराधी के प्रति क्रोध जानत हो गया तो उसका प्राणान्त किये बिना नहीं रहता ।B7 वणिक् जनों के क्रोधोपशमन का उपाय :
प्रिय वचनावसानः कोपो वणिग्जनानाम् ।।३8 ।। अन्वयार्थ :- (वाणिग्जनानाम) वणिकों का (कोपः) क्रोध (प्रियवचनावसान:) मधुर वचन वादन पर्यन्त [भवति] होता है ।
व्यापारीजनों का क्रोध तब तक रहता है जब तक कि मधुर वाणी का प्रयोग नहीं करें ।
विशेषार्थ :- वणिक् जनों का कोप प्रिय वचन बोलने पर्यन्त ही रहता है । गर्ग विद्वान ने भी निम्न प्रकार से कहा है :
यथा प्रियेण दष्टे न नश्यति व्याधिर्वियोगजः ।
प्रियालापेण तद्वद्वणिजां नश्यति ध्रुवम् ।।1।। अर्थ :- जिस प्रकार इष्ट-प्रिय वस्तु के वियोग होने पर दुःख होता है, उस वस्तु की प्राप्ति होने पर वह वियोग जन्य पीड़ा नष्ट हो जाती है उसी प्रकार वणिकों का क्रोध भी मधुरवाणी बोलने से प्रशमित हो जाता है। वैश्यों की क्रोध शान्ति का उपाय :
वैश्यानां समुद्धारक प्रदानेन कोपोपशमः ।।।। अन्वयार्थ :- (वैश्यानाम्) वणिकजनों का (समुद्धारक) कर्ज (प्रदानेन) चुका देने से (कोपः) क्रोध (उपशम:) शान्त [भवति] होता है ।
जमींदार वणिकों का क्रोध उनका कर्ज चुकाने से शान्त हो जाता है ।
विशेषार्थ :- लोक में देखा जाता है कि सगा भाई, पिता भी यदि कर्ज लेकर न चुकाये तो परम शत्रु हो जाता है और समय पर या मांगने पर चुका दे तो उसी समय उसकी कोपाग्नि शान्त हो जाती है । भृगु विद्वान ने भी कहा है
अपि चेत् पैत्रिको वैरो विशां कोपं प्रजायते । उद्धारक प्रलाभेन निःशेषो विलयं व्रजेत् ॥1॥
अर्थ :- यदि जमींदार के पिता का भी वैरी हो, जो कि उसे कुपित कर रहा हो परन्तु यदि उसके ऋण को चुका देता है तो वह शांत हो जाता है ।
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